Friday, May 31, 2013
ऎसा लगता है कि कोई नगरवधु मांग में सिंदूर भरकर प्रवचन कर रही हो.
हो गया खात्मा नक्सलवाद का.भूल गये नक्सलवाद के ज़ख्म.सूख गये आंसू इंसानियत की कथित आंखो के,इंसानी खून की सडांध,लाश के चीथडे,मांस के लोथडे,सब अब किस्सो-कहानियों के लिये शेष हो गये है.एक बार फिर क्रिकेट,सट्टा और श्रीनिवासन हावी हो रहे है.आखिर ऎसा क्या हो गया क्रिकेट में जो पहली बार हुआ हो.और फिर सट्टा और दाऊद कनेक्शन से इतनी ही एलर्जी है तो क्या कभी बालीवुड कि फिल्मो में लगे काले और अंडरवर्ल्ड के पैसो के बारे में इतने सवाल उठाये गये.गुलशन कुमार की हत्या से लेकर दिव्या भारती की संदिग्ध आत्महत्या तक क्या कुछ संदेह के दायरे में नही था?क्या कभी इतने सवाल,इतनी डीटेल चर्चा हुई है उस पर?क्या नियम सिर्फ क्रिकेट के लिये ही होने चाहिये?क्या निर्मल बाबा को पानी पीपी कर गाली बकने और उसे फर्ज़ी साबित करने के बाद फिर से उसका विग्यापन दिखाने वालो के लिये नियम नही होने चाहिये?कैंसर और अन्य जानलेवा बीमारियों का शर्तिया इलाज और लम्बाई बढाने से लेकर दिमाग तेज करने वाले भ्रामक विग्यापनो के जरिये ज़िंदा रहने वाले जब नैतिकता की बात करते है तब ऎसा लगता है कि कोई नगरवधु मांग में सिंदूर भरकर प्रवचन कर रही हो.
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4 comments:
पैसा बड़ी चीज है भाई!
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क्या नियम सिर्फ क्रिकेट के लिये ही होने चाहिये?क्या निर्मल बाबा को पानी पीपी कर गाली बकने और उसे फर्ज़ी साबित करने के बाद फिर से उसका विग्यापन दिखाने वालो के लिये नियम नही होने चाहिये?कैंसर और अन्य जानलेवा बीमारियों का शर्तिया इलाज और लम्बाई बढाने से लेकर दिमाग तेज करने वाले भ्रामक विग्यापनो के जरिये ज़िंदा रहने वाले जब नैतिकता की बात करते है तब ऎसा लगता है कि कोई नगरवधु मांग में सिंदूर भरकर प्रवचन कर रही हो.
बेहद सटीक सर जी, सही जगह भरपूर चोट मारी है... अब तो उबकाई आने लगी है इस सब को सुन सुन कर...
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बिल्कुल सही लिख रहे हैं,इनकी कथनी कुछ है और करनी कुछ.
ईश्वर सबको निर्णय लेने का साहस दे।
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