Thursday, June 20, 2013

ईश्वरीय चमत्कार न सही इंजिनीयरिंग की मिसाल है 13 सौ साल पुराना लक्ष्मण मंदिर.

भारत के सबसे प्राचीन इंटों से बने मंदिरों में से एक लक्ष्मण मंदिर महानदी के किनारे खड़ा है आज के पिछड़ा कहलाने वाले छत्तीसगढ़ की प्राचीन भव्यता और ज्ञान का प्रतीक बनकर। दक्षिण कोसल की राजधानी श्रीपुर अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पुरातत्व स्थलों में एक है। यहाँ कभी दस हजार भिक्षु भी रहा करते थे।

राजधानी से मात्र 90 किलोमीटर दूर है, आज का सिरपुर जो कभी श्रीपुर हुआ करता था। ये नालांदा और तक्षिला से भी पुराना शिक्षण केन्द्र हुआ करता था। मगध के राजा सूर्यवर्मन की पुत्री वासटा ने अपने पति की स्मृति में लक्ष्मण मंदिर बनवाया था, वे महासोमवरसी राजा महाशिवगुप्त बालार्जुन की माता थी। महाशिवगुप्त बालार्जुन ने 595 से 653 ई. तक 58 साल राज किया था। सातवीं सदी में यहाँ चीन के महान पर्यटक और विद्वान ह्वेन सांग आए थे, उनके अनुसार सिरपुर में उस समय महायान संप्रदाय के 10 हजार भिक्षु निवास करते थे, सिरपुर ज्ञान-विज्ञान और कला का केन्द्र बना रहा।

रायपुर से 18 कि.मी. तक भीड़-भाड़ वाला टै्रफिक रहता है और उसके बाद सड़क खाली मिलती है। मंदिर हसौद गांव के बाद राष्ट्रीय राजमार्ग क्र.6 धीरे-धीरे खुबसूरत होता जाता है। एक और छोटा सा कस्बा आरंग आता है, उसके बाद महानदी रास्ता काटती है। महानदी के बाद सफर का आनंद आता है। कुछ किलोमीटर बाद एक छोटा सा बाँध है कोडार। इसके बाद जंगल शुरू हो जाता है। यहाँ हाईवे छोड़कर एक सड़क सिरपुर के लिए जाती है, जो जंगलों के बीच गुजरती हुई सफर को यादगार बना देती है।

सिरपुर पहुँचते ही प्राचीन बौध्दविहार के उत्खनन कार्य चार दिवारी में घिरे नज़र आते हैं। थोड़ा आगे जाने पर लक्ष्मण मंदिर का भव्य परिसर मिलता है। ये राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक है। गेट पर चौकीदार रहता है और 5 रूपए की टिकट पर एक आदमी को प्रवेश मिलता है। अंदर पहुँचते ही अलग ही काल में पहुँच जाने की अनुभूति होती है। सात फीट ऊँचे पत्थरों के विशाल चबूतरे पर लक्ष्मण का विशाल ईंटों से बना मंदिर गर्व से खड़ा है, उस काल के कलाकारों के उच्च तकनीक और बेहद मजबूत ईंट बनाने की कला और ज्ञान का सबूत देते हुए।

मंदिर में अब प्रवेश नहीं मिलता। द्वार पर ताला लगा दिया गया है, कारण मंदिर के भीतर रखी शेषनाग के अवतार लक्ष्मण की मूर्ति एक बार चोरी हो चुकी है। बड़ी मुश्किल से ये मूर्ति वापस मिली, और तब से ये ताले में कैद है। गर्भ गृह में नागराज अनंत शेष की बैठी हुई पत्थर की सुंदर मूर्ति सौम्य मुद्रा में हैं। पंचरथ प्रकार का ये मंदिर गर्भ गृह अंतराल और मंडप से संयुक्त है। मंदिर की बाहरी ईंटों की दीवारों पर कूटद्वार खिड़कियाँ, भारवाहक गण, गज, कीर्तिमुख और कमल बहुत ही सुंदरता से उकेरे हुए हैं। मंदिर का प्रवेश द्वार भी बहुत सुंदर है। दरवाजे के दोनों पिल्हर पर विष्णु के प्रमुख अवतार कृष्ण लीला के दृश्य अलंकरण्ा, प्रतीक, मिथुन दृश्य और वैष्णव द्वारपाल अंकित है। दरवाजे के ऊपर वाली बीम पर शेषाशयी विष्णु प्रदर्शित है।

लक्ष्मण मंदिर के निर्माण का काल 650 ई. माना गया है। इस हिसाब से साढ़े 13 सौ साल से भी ज्यादा पुराना ये ईंटों का मंदिर आज भी मौसम की चुनौतियों का सीना ताने सामना कर रहा है। हालांकि इसके पास ही बने राम मंदिर के अब सिर्फ अवशेष ही मिलते हैं। इसी तरह वहीं करीब महानदी के तट पर आज तक पूजा जा रहा गंधेश्वर शिव मंदिर भी है। लेकिन मराठा काल में वे जीर्णोध्दार से इसका मौलिक स्वरूप विलुप्त हो गया है। लक्ष्मण मंदिर के ठीक बाजू में पुरातत्व शास्त्रियों ने एक आवास शाला भी खोजी है, यहाँ पुजारियों का निवास हुआ करता था।
उस काल में पत्थरों की कमी को ध्यान में रखते हुए निर्माणकर्ताओं ने विकल्प के रूप में ईंटों को निर्माण की मुख्य सामग्री बनाया था। ईंटों पर की गई कारिगरी बेहत खुबसूरत है। साढ़े 13 सौ साल से ईंटें बारीश, धूप और हवा झेल रही है लगातार और खड़ी है आज के ईंट बनाने वाले हाईटेक लोगों को मुँह चिढ़ाते हुए। तो कैसा लगा लक्ष्मण मंदिर ? आपको सैर कराएँगे यहीं के बौध्द विहारों की जो नालंदा और तक्षशिला से भी पुराने हैं।

8 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

मन्दिर बहुत भव्य है, कमाल की कारीगरी है. अफसोस यह कि चोरी पर लगाम नहीं लगाई जाती, बेचारे श्रद्धालुओं पर ही लगाम कस दी जाती है. ऐसी लापरवाही हमारे देश में ही देखने को मिल सकती है जहां अमूल्य धरोहरें नष्ट हो रही हैं और सब लोग चुपचाप बैठे हैं.

पूरण खण्डेलवाल said...

सुन्दर और रोचक जानकारी जो यह सिद्ध करती है कि भारतवासी पुरातन काल में आज से बहुत आगे थे !!

P.N. Subramanian said...

सिरपुर के बारे में सुस्पष्ट ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए आभार।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

धन्‍यवाद इस जानकारी के लि‍ए

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (21-06-2013) के "उसकी बात वह ही जाने" (शुक्रवारीय चर्चा मंचःअंक-1282) पर भी होगी!
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रविकर जी अभी व्यस्त हैं, इसलिए शुक्रवार की चर्चा मैंने ही लगाई है।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Rahul Singh said...

ईंटों पर रचा तकनीक का काव्‍य है सिरपुर का लक्ष्‍मण मंदिर.
''ये नालांदा और तक्षिला से भी पुराना शिक्षण केन्द्र हुआ करता था।'' कथन में परीक्षण और पुष्टि की आवश्‍यकता है.

प्रवीण पाण्डेय said...

दुख है कि इतिहास के ऐसे ही भव्य अध्याय किसी को बताये ही नहीं गये। मुगल और अंग्रेज तक यहाँ महिमामंडित रहे।

darshan jangra said...

सुन्दर और रोचक जानकारी