Saturday, June 15, 2013

अब पता चला कि मुसीबत अकेले क्यों नही आती.

ऎसा क्यों होता है अक्सर कि मुसीबत एक के बाद एक सामने आती है?परसो छोटा भाई सुनील घूमने निकल गया 7 दिनों के लिये और भरी बरसात सारी ज़िम्मेदारियां भी डाल गया मेरे कंधो पर.कल पहला दिन था और सुबह सुबह पता चला ड्राईवर नंदे आज नही आने वाला.उसे गालियों बकते हुये साईट पहुंचा काम बंद था.पूछा तो पता चला सरप्लस एनर्जी वाले स्टेट में राजधानी से मात्र 34 कीमी पर तीन दिनो से बिजली लापता है.बिल पटाने के लिये मुंशी को पास के कस्बे में भेजा वो बैरंग लौट आया और कहा कल पटेगा.यानी कल भी जाना ही पडेगा.कुडकुडाते हुये वापस लौट रहा था की कार पंक्चर हो गई.सालो बाद खुद चक्का बदलने की नौबत आई.कार में जैक तो था जैक राड नही मिली.सोचा पास के कस्बे तक चला कर लेजाता हूं ,वंहा सब व्यवस्था हो ही जायेगी.ड्राईवर को मन ही मन हज़ारो गालियां बकते हुये वंहा पहुंचा तो पंक्चर बनाने वाले तो थे पर ट्यूबलैस टायर का पंक्चर नही बनाते थे.खीज़ कर कार स्टार्ट कर थोडा आगे बढाई,तभी पीछे से हमारे बिजली काण्ट्रेकटर आ पहुंचे,उन्होने कार रुकवाई और कहा सर टायर खराब हो जायेगा तब तक टायर का बाजा बज़ चुका था.खैर जोम भी उसने अपने हेल्पर से कहकर चक्का बदलवा दिया.घर पहुंच कर नेट खोला तो उसका भी बाज़ा बजा हुआ था.सोचा अपनी मुसीबत ही शेयर कर लूं.क्या बार बार देश के लिये रोना. आज सुबह सुबह ड्राईवर आ धडका.अब मेरा दिमाग और खराब क्योंकि आज गाडी नही मैं खुद ही पंक्चर हो गया था.तबीयत गडबड कर रही थी.आसमान के समान ही पेट का हाल था.लेकिन वो मानसून की तरह धोखा दे रहा था.रह रह कर गरज तोम रहा था मगर बरसात नही हुई गनीमत है.ड्राईवर से भाग बे जाकर साईट पर काम देख और मैं गया सीधे अस्पताल.भगवान की दया से बीपी नार्मल निकला.पर पेट में सीज़नल इंफेक्शन नें अपना काम कर ही दिया था.अभी तक तो इतना ही भुगता हूं,पर इतने में पता चल गया कि मुसीबत कभी अकेले नही आती.देखे आगे और क्या भुगतना है.

4 comments:

Khushdeep Sehgal said...

अनिल भाई,

ये सब तो ठीक लेकिन 'असली स्थायी मुसीबत' से कब तक बचते रहोगे...

मेरा पुराना मोबाइल खोने की वजह से आपका नंबर भी खो गया है...क़ॉल कीजिएगा...

जय हिंद...

Arvind Mishra said...

Take care! :-)

Sanjeet Tripathi said...

Tension nai lene ka boss..halka fulka hota hai chalta hai...meri to waat lagi hui hai. Ek mahine se jyada ho gaya. Fir bhi tension nai le rahaa

प्रवीण पाण्डेय said...

जैसे भी अवसर मिल पाये, ढेर सारी नींद उड़ाइयेगा।