Thursday, July 30, 2015
इस देश में दिखाने को याकूब की फांसी,ओवैसी के भडकाऊ बयान ही रह गये है?
लोकतंत्र,धर्मनिर्पेक्षता,मानवाधिकार और न्याय व्यवस्था के नाम पर इस देश में किसी भी बात पर बहस शुरू हो जाती है.अब फांसी पर विवाद खडा हो रहा है,उसकी फांसी पर जिसने ढाई सौ से ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतारने का सामान बाज़ार में बिछा दिया था.सैकडो लोग घायल हुये थे.जिनके परिजनो की मौत हुई और जिनके रिश्तेदार घायल हुये वे सालों इस गुनाह के गुनाहगार की सज़ा का इंतज़ार करते रहे,उनकी भावनाओ पर कंही कोई खबर नही,खबर है तो सैकडो लोगो की मौत के ज़िम्मेदार गुनाह्गार,आतंकवादी,पाकपरस्त की फांसी पर होने वाले विवाद की.और फिर अगर उसकी फांसी पर जो लोग विवाद खडा कर रहे है,क्या उन्ह देशभक़्तक्या माना जा सकता है?क्या न्यायपालिका के फैसले पर सवाल उठाना,उसकी अवमानना नही है?फिर इस देश में दिखाने को याकूब की फांसी,ओवैसी के भडकाऊ बयान ही रह गये है?हद है बेशर्मी की और इस देश की जनता की सहनशीलता की भी.जिस दिन सहनशीलता का बांध टूटेगा तो फिर शायद संभाले नही संभलेगा.
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