Wednesday, September 16, 2015
औलाद की जान लेने की मज़बूरी तो समझो सरकार
औलाद की जान लेने की मज़बूरी तो समझो सरकार.कोई मां अगर अपनी ही औलाद को मार डाले तो अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि वो किस कदर निराश,हताश होगी.अपने जिगर के टुकडे को अपने ही हाथों कत्ल कर देना ये साबित करता है वंहा उम्मीद थी ही नही.नाउम्मीदी के इस कठीन दौर में पंहुचने के लिये ममतामयी मां को किसने पहुंचाया,ये सवाल राजनीति की चक्की में पिस कर पता नही कंहा गुम हो चुका है.आम आदमी की पार्टी और खास लोगो की पार्टी दोनो ही एक दूसरे को नंगा करने पर तुली हुई है पर उनके इस नंगेपन के नाच में असल में कोई नंगा हो रहा है तो वो है तरक़्क़ी का झूठा दावा.इंसानियत नंगी हो रही है.बेबसी सामने आ रही है आम आदमी की.एक मां की और बेशर्मी भी सामने आती है सरकारों की,राजनीतिक पार्टियों की भी और अफसरशाही की भी.अफसोस की बात है कि देश की राजधानी में,किसी जंगल के गांव मे नही,देश की राजधानी में एक निराश मां अपने बच्चे का क़तल कर खुद खुदकुशी कर लेती है.एक बच्चे की मौत पर उसके मां बाप आत्महत्या कर लेते है और बेशर्म राजनीति बयानबाजी में उलझी नजर आती है,इससे ज्यादा शर्मनाक शायद ही कुछ और होगा.
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