Thursday, July 24, 2008

अचानक कहां से पैदा हो जाते है गरीब।

छत्तीसगढ़ में गरीब अचानक ही बढ़ जाते है। पता नहीं कैसे और कहां से आ जाते है। पिछले दिनों इस बात को लेकर जमकर हंगामा भी हुआ और अकेले रायगढ़ जिले में 17 हजार से ज्यादा फर्जी गरीबों का पता चला। एक बार फिर गरीब बनाने वाली सरकारी दुकान खुल गई है। 3 रू किलों चावल, सस्ता नमक और तेल लेने के लिये फिर लोग गरीब बनने की कतार में खड़े हो गये है।

18 जिले है छोटे से छत्तीसगढ़ राज्य में। उनमें से आधे तो आदिवासी बहुल है। बाकी जिलों में जो गरीब बनने और बनाने का खेल चल रहा है वो हैरतअंगेज है। दो करोड़ की आबादी में से लगभग एक करोड़ तो जंगलों में ही रहते है, बाकी शहरों में। ठीक है छत्तीसगढ़ पिछड़ा प्रदेश है और यहां की धरती भले ही अमीर हो, लोग गरीब है। अब राशन कार्डों के जरिये जो गरीब नहीं है उनको भी गरीब बनाया जा रहा है और जो है ही नहीं या जिनका अस्तित्व नहीं है ऐसे गरीब कार्डों पर उतर आ रहें है।

रायगढ़ जिले में 45 हजार से ज्यादा गरीबी रेखा के नीचे वाले राशनकार्डों के फर्जी होने का मामला सामने आया था। इस मामले में विधानसभा में जमकर हंगामा भी हुआ और सरकार ने माना कि कुछ कार्ड फर्जी है। ऐसे 17 हजार कार्ड फर्जी पाए गये। ये हुआ एक अकेले छोटे से जिले रायगढ़ का हाल। अब इससे पूरे प्रदेश की हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है।

फर्जी राशन कार्ड बनाने वाले दरअसल गरीबों के हिस्से में आनेवाला चावल, नमक और तेल मुफ्त में डकार रहें है। रोज चावल में कनकी याने चावल का चूरा मिलाने के मामले सामने आ रहे है। करोड़ों के वारे न्यारे करने वाले राइस मिलर्स गरीबों का कौर तक छीन कर खा रहें है। कोई बोलने वाला नहीं, कोई रोकने वाला नही, कोई टोकने वाला नहीं।

सरकार क्या कर रही है ये तो सरकार जाने लेकिन सरकारी पार्टी यानी भाजपा एक बार फिर वोट बैंक बढ़ाने की खातिर सरकारी शिविरों में अपने लोगों को गरीब बताने या बनाने के लिये ऐड़ी चोटी का जोर लगा रही है। हर शिविर हाउसफुल है। ऐसा लगता है कि नदियों में बाढ़ आने की बजाय शहरों में गरीबों की बाढ़ आ गई है। एक बार फिर गरीबी की आड़ में अमीर राशन दुकानदार करोड़ों की हेराफेरी का खेल में मशगुल हो गये है।

अब ऐसे में गरीबी बढ़ रही है या गरीब बढ़ रहे है या उनकी आड़ में रईस बढ़ रहें है ये सबको पता है। सरकार भी ऐसा नहीं है कि इससे वाकिफ न हो। कभी धान के कटोरे के नाम से जाना जाता था छत्तीसगढ़ जो अब चावल घोटालों के लिये मशहूर हो रहा है। जितनी उपज होती नहीं है उससे कई गुना ज्यादा धान कागजों में खरीदा जाता रहा है। मामले खुलते भी रहें है, एफआईआर भी हुई है, एक-दो राइस मिलर्स जेल भी गये है लेकिन उसके बाद लंबी खामोशी छाई हुई है। इस मामले में विपक्ष यानी कांग्रेस की खामोशी भी उसकी बदनियती की चुगली करती है।
बहरहाल एक बार फिर गरीब बनाने के कारखाने खुल गये है। इस कारखाने में बने गरीब पहले से ही अमीर राइस मिलर्स और राशन दुकानों को और अमीर बनाने के औजार बनेंगे। और जो वाकई गरीब है वो शायद और गरीब होते चले जायेंगे।

10 comments:

राज भाटिय़ा said...

अनिल जी यही बदकिस्मती हे इस देश की, जो होना चाहिये वो हो नही रहा, ओर जो नही होना चाहिये वो खुब जोर शोर से हो रहा हे, कही तो रुकेगी यह अन्धेर गिरी,जनता को भी जगरुक होना चाहिये, आप का लेख आंखे खोल ने के लिये काफ़ी हे,धन्यवाद

photo said...

sir aysa hay congrase to chor hay sab jantay hay layken bjp k liy sabd kum pad jay ke kitna ,,,,,,,,,,hay

vipinkizindagi said...

आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया
आकर अच्छा लगा
आपके ब्लॉग को पूरा पढ़ा, आपने सही मुद्दे उठाए है
मेरा ब्लॉग भी देखे

Unknown said...

ये खेल पूरे देश में कमोबेश चल रहा है, कहीं राहत के नाम पर, कहीं नीले-पीले-लाल कार्ड के नाम पर, कुल मिलाकर ऐसी कोई योजना नहीं है जिसमें गले-गले भ्रष्टाचार न हो…

Gyan Dutt Pandey said...

मुझे भी यह मथता है कि बीमारू प्रान्त संसाधनों की प्रचुरता के बावजूद गरीब क्यों हैं? और अन्तिम रूप से कुछ समझ नहीं आता।
आसान लगता है पोलिटिकल लीडरशिप को कोस देना। पर मेरे विचार से व्यापक अशिक्षा, पैसे के प्रति गलत एटीट्यूड, लोगों का बैसाखी/अफीम के रूप में सरकारी सहायता का मुंह जोहने की आदत रखना... न जान कितने फैक्टर हैं।
कुशल और ईमानदर नेतृत्व जरूरी है। पर वही अपने आपमें पूर्ण नहीं है।

Anonymous said...

acha vishay hai aapka-- vakayi garibo ki snkhya din b din badhte ja raai hai .. pata hi nahi chal pata ki garib kaon hai aur aamir ..
aapka ek chota shubchintak

दीपक said...

आपकी कलम बहुत कुछ बोलती है और साथ ही छ्त्तीसगढ की अपडेटॆड जानकारी और विश्लेषणात्मक लेख पढने को मिलता है ! सादर आभार

डॉ .अनुराग said...

चोर चोर मौसेरे भाई है जी सब यहाँ .....सत्ता में कोई भी हो बस हिस्सा कुछ न कुछ पहुँचता ही है.......

seema gupta said...

इस मामले में विपक्ष यानी कांग्रेस की खामोशी भी उसकी बदनियती की चुगली करती है।
बहरहाल एक बार फिर गरीब बनाने के कारखाने खुल गये है। इस कारखाने में बने गरीब पहले से ही अमीर राइस मिलर्स और राशन दुकानों को और अमीर बनाने के औजार बनेंगे। और जो वाकई गरीब है वो शायद और गरीब होते चले जायेंगे।
" its really pianful, wonderful article to read about'
Regards

उमेश कुमार said...

मेरा मानना है की अब सम्वेदनशीलता खत्म होती जा रही है
आज सुबह जब मै चाय की चुस्कियो के साथ अखबारो के समाचारो का जायजा ले रहा था तभी मेरे घर मे दूसरा प्रसंग भी साथ-साथ घट रहा था।दूसरा प्रसंग गरीबी रेखा को लेकर जारी था।हुआ यूं कि मेरे घर काम करने वाली महिला मेरी धर्मपत्नी को बता रही थी कि उसके गांव मे समपन्न परिवारो का नाम गरीबी रेखा के नीचे वाली सूची मे है जबकी वास्तविक गरीबो का नाम इस सूची से गायब है।निहायत गरीब जो रोजी मजदूरी कर जीविका चलाते है उनका नाम गायब और सम्पन्न लोग जिनके पास पक्का मकान,खेत तथा पशुधन है वे गरीबो मे शामिल है। काम वाली बाई का नाम भी गरीबी रेखा वाली सूची से गायब है जबकी वह पात्रता रखती है। उसका पति दैनिक मजदूर है और वह स्वंय लोगो के घरो मे बर्तन मांजने का काम करती है।
यह सुनकर मेरी धर्मपत्नी ने मेरे पास आकर कहा कि आखिर आप लोग पत्रकार होकर क्या कर रहे हैं?इन विसंगतिओ पर आपका ध्यान क्यो नही जाता, आप लोग प्रशासन,शासन के सामने ऐसी समस्याओ को क्यो नही लाते? मै अपनी विशुद्ध गृहणी धर्मपत्नी को बताया की यह मामला इतना आसान नही है जितना तुम समझ रही हो।रोज-रोज ही इस तरह का नजारा जिला मुख्यालय और तहसील मुख्यालय मे देखने को मिलता है। दर्जनो गरीब महिलाएं गांव से चलकर गरीबी रेखा मे पक्षपात करने का आरोप लगाकर कलेक्टर से फ़रियाद करती हैं।इन महिलाओ की शिकायत भी यही रहती है की गांव के समपन्न लोग गरीबी रेखा मे शामिल है जबकी हमारे जैसे निहायत गरीब छोड दिये गए है।बार बार कलेक्टर को आवेदन देती है शिकायत करतीं है लेकिन समस्या नही सुलझती। समूह की शिकायतो का भी कोई निराकरण नही हो पा रहा,तब ब्यक्तिगत आवेदनो शिकायतो का क्या मोल।
इस विसंगति का दूसरा पहलू भी है जिसके कारण छत्तीसगढ मे गरीबी रेखा के नीचे (बी पी एल)वाले कार्ड के ले मारामारी मची है । राशन दुकान ज्यादातर सत्ताधारी दल के कार्यकर्ता चला रहे है और उनका गणित है की गरीब लोग वास्तविक जरूरतमन्द होते हैं तथा राशन शतप्रतिशत वितरण हो जाता है।दूसरी ओर समपन्न लोग इस खाद्यान्न को कम ही खरीदते है जिसके कारण दुकानदार को लाभ होता है। छत्तीसगढ सरकार जब से गरीब परिवार को ३रु की दर से पैतीस किलो चावल देने लगी है तब से स्थिति और भी असन्तुलित हो गई है। सत्ताधारीदल के कार्यकर्ता को खुस रखने के लिए भी पक्षपात किया जा रहा है। यह स्थिति पूरे छ्ग की है राशन कार्द की मारामारी कमोबेश सभी जगह मची हुई है।

मै अपनी पत्नी को अखबार की उन कतरनो पर नजर डालने के लिए कहा जो मैने तथा अन्य पत्रकारो ने इस विसंगति को लेकर लिखा था।यह देखकर मेरी धर्मपत्नी की प्रतिक्रिया विषादपूर्ण और घोर निराशाजनक थी। मै उन्हे बताया की यह हमारी रोज की दिनचर्या मे शामिल है फ़िर भी हम निराश नही है और अपने पत्रकारिता के धर्म से च्युत नही होते। मेरा मानना है की अब सम्वेदनशीलता खत्म होती जा रही है