3 अगस्त से लापता हेलिकॉप्टर की खोज के लिये केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने अब जाकर भारतीय वायुसेना का एक एमआई-8 हेलिकॉटर भेजने की महान कृपा की है। हेलिकाप्टर के साथ लापता चार लोगो के परिवार वाले सरकारी खोजबीन से संतुष्ट नहीं है और उन्होंने अपना विरोध भी स्थानीय मंत्री के सामने प्रकट किया है।
हैदराबाद एयरबेस से भेजा गया ये हेलिकॉप्टर गुम हेलिकॉप्टर की तलाश करेगा। लगभग दो सप्ताह बाद भेजी जा रही इस केन्द्रीय मदद का क्या लाभ मिलेगा ये तो पता नहीं, मगर इस मामले में केन्द्र सरकार की लंबी खामोशी उसकी संवेदनशीलता पर जरूर सवालिया निशान लगाती है। मुझे अच्छी तरह से याद है पिछले साल राजस्थान में बाढ़ में फंसे एक आदमी को बचाने के लिये किस तरह चिल्ला-चिल्ली मची थी। और भी कई मामले हुए है जिस पर जमकर शोर मचा था। सारे राष्ट्रीय चैनल एक सुर में बचाओ राग आलाप रहे थे।
यहां छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल में एक नहीं चार इंसान लापता है। पता नही क्यों उनके लिये हंगामा नहीं हो रहा। क्या उनकी जान सस्ती है ? या फिर सारा खेल टीआरपी का है? या छत्तीसगढ़ जैसे पिछड़े राज्य की खबर नेशनल न्यूज नहीं हो सकती? क्या उन चार परिवार वालों के आंसु सिर्फ एनडीटीवी वालों को ही नजर आये? क्या उनका दर्द सिर्फ एनडीटीवी ही समझ सका? क्या सबसे ज्यादा पुरूस्कार जीतने का दावा करने वालों को ये सब नजर नहीं आया। यहां मेरा उद्देश्य एनडीटीवी की तारीफ या बाकी चैनल को गालियां बकना नहीं बल्कि ऐसे मामलों में कथित नेशनल न्यूज चैनल की असंवेदनशीलता सामने लाना है।
खैर शोर मचाने या हंगामा खड़ा करने से कुछ नहीं होता अगर लापता लोगों की तकदीर अच्छी है तो बिना शोर-शराबे के भी वे बच जायेंगे। लेकिन सवाल तकदीर का नहीं सवाल तरीके का है। जिस तरीके से उन्हें बचाने या खोजने की कोशिश की गई है या की जा रही है वो किसी भी सूरत में ईमानदार नहीं कही जा सकती। महज खानापूर्ति हो रही है। लापता लोगों के रिश्तेदारों की उम्मीदें रोज सुबह जागती है और रात होते होते मर जाती है।
थम गए है आंसु,
थक गई है आंखे भी,
नींद भी नहीं आती है रात भर,
कहीं से कोई आती नहीं अच्छी खबर।
14 comments:
ये सरकार की संवेदनाओं का पतन भी हो सकता है , जो दूसरो के दर्द को दर्द नहीं समझते है , कुर्सी की रस्सा कशी में ये जिस्म का वो हिस्सा बन कर रह गए है जो निष्क्रय हो जाता है , गुम हुए पायलट के परिवार वालों का दर्द वो ही समझ सकते है , ये तो सच है की दर्द का अहसास उसे ही होता है जिसे चोट लगी हो , सरकार के निकम्मे पन का ये वो बदनुमा चहरा है जो हर जगह दीखता है ...
मुझे लगता हे वो इन चारो को नही अपने लापता हेलिकॉप्टर को ढुडने आये होगे, वह चारो तो अब इन की इन्तजार मे थोडे ही बेठे होगे, भगवान उन की लम्बी उम्र करे
अनिल जी,
किस मीडिया से अपेक्षा रखते हैं कि वे सचमुच खबरे दिखायेंगे? वे विशुद्ध व्यापारी हैं...छतीसगढ के गुमनाम भूतों का इन्हे पता दे दीजिये फिर देखिये 24x7 वही दिखेगा..
***राजीव रंजन प्रसाद
पुण्य प्रसून जी के ब्लॉग पर मेरा भी यही सवाल था कि क्या उटपटांग खबरे दिखाने वाले चैनलों को बस्तर नज़र नहीं आता।
had hai andekhi ki
चलिए देर से आए पर ये आए तो लेकिन दिल में आशा तो है पर ख्याल ठीक नहीं आ रहे। दो सप्ताह का समय बहुत होता है। पर चैनलों में चैनल है ही एनडीटीवी ही जो खबर दिखाता है वरना तो सब टीआरपी के लिए ही लड़ते रहते हैं। जैसे मैं पहले भी कहता रहा हूं अनिल जी कि खबरें भी बिकाउ हो चली हैं, सच है ये।
न जाने किस हाल में होंगे वे चार लोग. चलिए, एक चैनल तो है जिसको बाजारू रेटिंग की परवाह नहीं. इसी तरह एक पत्रकार तो है जो बेबसों की बेबसी को भी सामने ला रहा है.
संवेदनशीलता अब खत्म हो चुकी है वरना क्या कारण था कि दो हफ्ते होने को हैं और अब खोज हो रही है, इसमें कोई VIP नहीं था वरना यही खोज दो मिनट में शुरू हो जाती थी।
संवेदनहीनता की हद है यह ।
थम गए है आंसु,
थक गई है आंखे भी,
नींद भी नहीं आती है रात भर,
कहीं से कोई आती नहीं अच्छी खबर।
ये भी बाजारीकरण है , इसमे मानवीयता
खो गई है ! आपकी उपरोक्त ४ लाइनों से
मायूसी समझ आती है ! धन्यवाद !
छत्तीसगढिया संतोष के साथ कहना पड रहा है कि, एनडी हो या कोई और, किसी नें तो सुध ली ।
हमें समझ में नहीं आता इस हादसे के पूर्व सरकार किस मुह से केन्द्र से नक्सलियों से सामना करने के लिए हेलीकाप्टर मांगती थी । इतना बडा गुम हेलीकाप्टर, छग शासन के हवाई सक्षम होने के बावजूद जब जंगल में पता नहीं लगाया जा सक रहा है तो नक्सली कैम्पों को क्या खाक पता लगा पावेंगें ।
विचारोत्तेजक, मार्मिक और बिल्कुल सटीक.
बधाई.
जिसका मरे वो रोवे...
आपका कहना बिल्कुल सही है...".महज खानापूर्ति हो रही है।"
jab jage tab savera bhi nahi kah sakte ham to .....
धन्यवाद अनिल जी !
आप बहुत अच्छा लिख रहे है इसलिए मुझे नहीं लगता की आप पत्रकार हैं ! मीडिया से जुड़े अधिकतर लोगों का कोई भी सरोकार देश की भलाई से नही हो सकता उन्हें सिर्फ़ मसालेदार विषय चाहिए और सारे चैनल्स वही बोलना शुरू कर देते है ! संवेदनशीलता से इनका नाता सिर्फ़ इस शब्द से है जिसका उपयोग लेख लिखते समय यह लोग करते हैं ! आप जिस तरह स्पष्टवादिता से लिख रहे हैं मुझे भय है की आप अपनी कम्युनिटी से अलग पड़ने का खतरा ले रहे हैं ! बहरहाल मुझे आपका लेख बहुत अच्छा लगा, कृपया इस प्रकार के विषयों पर लिखते रहें !
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