बचपने से सुनते आ रहे हैं जैसा बोओगे वैसा काटोगे।मगर इस कहावत को झुटला दिया है छत्तीसगढ के महान जादूगरों ने।उन्होने लगभग पौन करोड़ रूपये के काजू के पेड़ लगवाये थे जिनसे हमारी आने वाली पीढी को आम के फ़ल मिलेंगे।मैं मज़ाक नही कर रहा हुं,सच कह रहा हूं।और इस जादू को आम जनता ने नही खुद सरकार की बनाई विधायकों की टीम ने देखा है।है ना चमत्कार।
ये चमत्कार कर दिखाया है छत्तीसगढ के उद्यानिकी विभाग के कलाकारो ने।उन्होने पिछले साल बस्तर मे लाखो रूपये के काजू के पौधे लगवाये थे।एक तो बस्तर उसपर से जंगल विभाग,शिकायत तो होनी ही थी।जांच के लिये विधायको की टीम बना दी गई और जब टीम ने उस ईलाके का दौरा किया तो कुदरत को मात देने वाला चमत्कार उन्हे दिखाई दिया।जंहा काजू के पौधे लगाये गये थे वंहा आम के पौधे मिले।कुछ जगह तो खाली गड्ढो ने कुदरत की तरफ़दारी करते हुये वंहा काजू के पौधे लगे होने का झूठा सबूत देने की कोशिश भी की,मगर विधायकों को न समझते हुये भी सब समझ मे आ गया।
बस्तर घने जंगलो का राजा और वंहा काजू का पेड़ किस लिये लगा रहे थे उद्यानिकी विभाग वाले ये तो वे ही बता पायेंगे।और जंगल विभाग वंहा अगर कुछ भी ना लगाये सिर्फ़ अवैध कटाई ही रोक ले तो भी बस्तर के साल के जंगल दुनिया के सबसे घने और खूबसुरत जंगल साबित होंगे।मगर काम नही करेंगे तो कमिशन कैसे खायेंगे?काम ही भ्रष्टाचार की जननी है।ये तो सरकारी दिग्गज़ो का मूलमंत्र है।सो किसी टकले के चिकनी हो चुकी खोपड़ी के समान मैदान मे पौधारोपण छोड़ घने जंगलो मे काम कर रहे हैं।जंहा न कोई जा सके न कोई देख सके और ना ही पौधे नही उगने पर उसका पता ही चल सके।
ऐसा ही एक चमत्कार हो सकता है आने वाले सालों मे और देखने मे।कोरिया,न न न न,वो परमाणु बम वाला नही भई,हमारे छत्तीसग़ढ का एक आदिवासी बहुल ज़िला है कोरिया।यंहा भी प्रकृति ने धरा पर खुद अपने हाथों से चित्रकारी की है।बेहद मनोरम और कंही से भी बस्तर से कम खूबसुरत नही है ये इलाका।जंगल विभाग ने अब इस ईलाके को चंदन की खूश्बू से महकाने का ठेका ले लिया है। चार लाख से ज्यादा चंदन के पौधे तैयार कर लिए गये हैं और अब कोरिया को चंदन ज़िला बनाने की तैयारी है,जैसे पहले की सरकार ने इसे हर्बल स्टेट बनाने की घोषणा की थी।सफ़ेद मूसली लगाने वाले सैकडो किसान बरबाद हो गये थे।खैर इस छोटे से राज्य मे जो ना हो वो कम है।बीड़ी पत्ते के चक्कर मे सबसे पहले नक्सलियों ने यंहा कदम रखा था और अब चंदन का पेड़ कंही किसी नये वीरप्पन को ना सामने ला दे।वैसे भी हाथियों का यंहा आना शुरू है ही,चंदन के साथ हाथी दांत भी मिल जायेंगे उसको।मगर इस्मे एक डाऊट है।कंही कोरिया मे भी बस्तर जैसा चमत्कार हो गया और काजू की जगह आम वाली स्टाईल मे चंदन की जगह बबूल निकल गये तो…………………।
18 comments:
ये चमत्कार नया नहीं है। 1947 से ही चल रहा है।
प्रभु ये आपका हमारा सबका छत्तीसगढ़ है यहां जो हो वह कम है। अकूत प्राकृतिक संपदा को सम्भाल कर रख लें वही बहुत है।
४ साल पहले ग्राम विकास छत्तीसगढ़ के एक आई ए एस अधिकारी से मेरी बात हुई थी तो उन्होंने बोला कि हमारे पास इतना पैसा है कि अगर ईमानदारी से बांटा जाये तो कम से कम १ लाख रुपया छत्तीसगढ़ के हर आदमी को मिल सकता है। पर ईमानदारी से रुपये देने का अधिकार हमारे पास नहीं है। बहुत रुआंसे थे वे इस बात से ।
ये चमत्कार तो होना ही था।
आप भ्रष्टराष्ट्र के चमत्कार वाली पोस्टें जो लिख रहे थे :-)
वाह,कैसे कैसे कलाकार हैं हमारे देश में!
घुघूती बासूती
अपने यहाँ इतनी ईमानदारी तो है कि काजू की जगह आम के पेड़ लगाये . न लगते तो तो क्या कर लेते ? हमारी व्यवस्था में नौकरशाही को जितनी निरंकुशता मिली है वह अंग्रेजों ने अपने लिए बनायीं थी हमारा पीछा उससे कब छूटेगा ? पहले भ्रष्टाचार का भी नियम था कि पैसे लेकर काम हो जाता था आजकल तो कई जगह पैसा भी डूब रहा ओर काम भी नहीं हो रहा है . जो बात आज बच्चा बच्चा जानता है , सरकार को नहीं मालूम क्या, भ्रष्टराष्ट्र वाकई ध्रितराष्ट्र है
Bahut khub...kya bat hai !!
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अपने प्रिय "समोसा" के 1000 साल पूरे होने पर मेरी पोस्ट का भी आनंद "शब्द सृजन की ओर " पर उठायें.
उन्हें सम्मानित कराईये न कि पोस्ट लिखकर जलील करें.
भ्रष्टाचार बडे बडे चमत्कार कर देता है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
इन नेताओ को भगवान का भी डर नही, ओर कोई पागल हाथी भी इन्हे नही मारता....
क्या होगा इस देश का जहां कोई भी वफ़ा दार नही, सभी इसे दीमक की तरह से खाना चाहते है.....
मुझे शिकायत है
पराया देश
छोटी छोटी बातें
नन्हे मुन्हे
इसी लिए तो कहते हैं मेरा भारत महान:))
भाई कोई ऐसा पेड़ भी ईजाद हुआ है क्या (?) जिसपर लगाईं तो जाएँ मारुती-800 लेकिन उगें मर्सडीज़ (!)
मर्सडीज़ की चाह है...बस यूं ही..
और लिखिये भर्ष्ट राष्ट्र पर आलेख? अब भुगतिये और काजूकतली की जगह अब आमपाक खिलाईयेगा शादी मे लोगों को.:)
रामराम.
भ्रष्टराष्ट्र का एक और कारनामा.......
साभार
हमसफ़र यादों का.......
जय हो!! चमत्कार ही है!!
वर्ग विभाजित समाज व्यवस्था में सरकार जंगल विभाग को इसलिए रखता है ताकि व्यवस्था के विरुद्ध विद्रोह को टाला जा सके। इस व्यवस्था में जनता को तो पिसना ही है। इस में जंगल विभाग का दोष क्या है। आप ने व्यंग्य के लिए गलत विषय चुन लिया। व्यंग्य करना था तो प्रणाली पर करते। आप के व्यंग्य ने व्यवस्था के नंगे सच को ढ़क दिया है। और जंगल विभाग को निशाना बनाया है।
देश के जंगल विभाग की कुल संख्या में से आधे से अधिक की आय तो साधारण क्लर्क से अधिक नहीं है। वे हास्य का विषय हो सकते हैं व्यंग्य का नहीं।
आप का आलेख जंगल विभाग बिरादरी के लिए बहुत ही अपमान जनक है। यह तो अभी हिन्दी ब्लाग जगत में जंगल विभाग पाठक इने गिने ही हैं और वे भी मित्र ही हैं। मैं ने भी आप के इस आलेख का किसी दलाल मित्र से उल्लेख नहीं किया है। इस आलेख के आधार पर कोई भी सिरफिरा जंगल विभाग कर्मचारी मीडिया में सुर्खियाँ
प्राप्त करने के चक्कर में आप के विरुद्ध देश की किसी भी अदालत में फौजदारी मुकदमा कर सकता है। मौजूदा कानूनों के अंतर्गत इस मुकदमे में सजा भी हो सकती है। ऐसा हो जाने पर यह हो सकता है, कि हम पूरी कोशिश कर के उस में कोई बचाव का मार्ग निकाल लें, लेकिन वह तो मुकदमे के दौरान ही निकलेगा। जैसी हमारी न्याय व्यवस्था है उस में मुकदमा कितने बरस में समाप्त होगा कहा नहीं जा सकता। मुकदमा लड़ने की प्रक्रिया इतनी कष्ट दायक है कि कभी-कभी सजा भुगत लेना बेहतर लगने लगता है।
एक दोस्त और बड़े भाई और दोस्त की हैसियत से इतना निवेदन कर रहा हूँ कि कम से कम इस पोस्ट को हटा लें। जिस से आगे कोई इसे सबूत बना कर व्यर्थ परेशानी खड़ा न करे।
आप का यह आलेख व्यंग्य भी नहीं है, आलोचना है, जो तथ्य परक नहीं। यह जंगल विभाग समुदाय के प्रति अपमानकारक भी है। मैं अपने व्यक्तिगत जीवन में बहुत लोगों को परेशान होते देख चुका हूँ। प्रभाष जोशी पिछले साल तक कोटा पेशियों पर आते रहे, करीब दस साल तक। पर वे व्यवसायिक पत्रकार हैं। उन्हें आय की या खर्चे की कोई परेशानी नहीं हुई। मामला आपसी राजीनामे से निपटा। मुझे लगा कि आप यह लक्जरी नहीं भुगत सकते।
अधिक कुछ कहने की स्थिति में नहीं हूँ।
अनिल भाई,
भरोसे में मत रहिये ! आप जिस आम पर उम्मीद टिकाये हैं , वो भी नहीं मिलने वाला !
"छत्तीसगढ़ का कोई आई.ए.एस. अधिकारी 'विकास' के लिये बहुत रोआंसा था "
(प्रेस क्लब के अध्यक्ष अनिल पुसदकर को पता नहीं,उन्होंने कभी बताया नहीं ,कभी लिखा नहीं )
रस्तोगी भैय्या , ये तो 'शताब्दी का व्यंग्य' हो गया !
मेरा भारत महान ..
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