ब्लागर मीट के रोचक अनुभव:मुझे तो अब तक़ पता ही नही था कि नेताओं की तरह ब्लागर भी दो प्रकार के होते हैं।एक जबर्दस्त और दूसरा जबरदस्ती।इतना जबरदस्त ज्ञान हमको मिला रायपुर ब्लागर मीट के बाद समुद्र मंथन टाईप विचार मंथन से।मैं तो खुद को भाग्यशाली समझ रहा हूं जो मीट मे चला गया वर्ना ऐसे महान विचारक और जबरदस्त ब्लागर से पता नही कब और कैसे मुलाकात हो पाती।
वैसे उन जबर्दस्त ब्लागर भाई के बारे मे किसी को कुछ बताने का इरादा न था और ना है।वे खुद ही अपने बारे मे बता चुके हैं और हो सकता है फ़िर बता दें आखिर वे ठहरे जबरदस्त ब्लागर।हम लोग तो लगता है उनकी परिभाषा के अनुसार दूसरी केटेगरी मे आते हैं यानी जबरदस्ती ब्लागर।ये क्लासीफ़िकेशन तो समझ मे आ गया गुरूजी मगर ये बात समझ मे नही आई कि जबरदस्ती ब्लागर अपना लिखा दूसरों को जबरदस्ती कैसे पढा सकता है?बस इतनी सी शंका है अगर इसका निवारण हो जाये तो हम जबरद्स्ती ब्लागर उन उपायों पर चलकर लोगों को जबरिया पढवा-पढवा कर हो सकता है एकाध दिन जबरदस्त ब्लागरत्व को प्राप्त कर सकें।
एक निवेदन है गुरुजी जो कुछ बतायें सारी दुनिया को अपने ब्लाग पर बतायें तो अच्छा लगेगा।वरना पिछली सारी बातें आपने साथी ब्लागर के ब्लाग पर कमेण्ट के रूप मे बताई थी जो मुझे लगा कि सबको पता चलना चाहिये इसलिये मुझे गड़े हुये मुर्दे उखाड़ना पड़ रहा है।वैसे एक बात मुझ नासमझ जबरदस्ती ब्लागर को और समझ मे नही आई कि आखिर आपको कौन सा ब्लागर ढोकर लाया गया दिखा।मेरे खयाल से वंहा जितने भी जबरदस्त और आपके हिसाब से ज्यादातर जबरदस्ती ब्लागर आये थे सब अपना बोझ खुद ढोने मे सक्षम थे।कौन ऐसा था जो बोझा था और किसे किसने ढोकर लाया ये भी थोड़ा स्पष्ट हो जाता तो बड़ी कृपा हो जाती,मेरा भी ज्ञान बढ जाता।
हां एक बात और आपने बताया है कि आपको वंहा भीड़ चुनावी रैली की तरह नज़र आई।भई हम तो समझ नही पाये कि चुनावी रैली की ज़रूरत किसे है और चुनाव होने कंहा है।हम तो शुरू मे कम उपस्थिती देख कर निराश हो गये थे और सारे अतिथी ब्लागरों से सम्पर्क कर उनके आने के बारे मे पता लगाने के लिय साथियों से कहते रहे।जब सबके आने का पता चला तब जाकर मन शांत हुआ।इसी कारण कार्यक्रम निर्धारित समय से आधा घण्टा देर से शुरू हुआ।अब आप ही बताईये जबरदस्त भैया कि जंहा लोगों के आने का इंतज़ार किया जा रहा हो वंहा चुनावी रैली जैसी भीड़ आपको कंहा से नज़र आ गई।मैं आपकी इस दूसरी(पहली कल बता चुका हूं)मनुष्यों मे नही पाई जाने वाली इंद्रिय का कायल हो गया हूं।
एक बात और किनके ब्लाग नही थे जिन्हे ब्लागर बताया गया ज़रा इस राज पर से भी पर्दा उठा देते तो हृदय गार्डन-गार्डन हो जाता और फ़िर उसकी घास पर बैठ कर चना खा लेते।मेरे खयाल से जितने लोग आये थे सभी ब्लागर थे और सबको बोलने का मौका भी दिया गया।किसी जबरदस्त ब्लागर को बोलने जबरद्स्ती रोका नही गया और ना ही किसी जबरदस्ती ब्लागर को जबरदस्ती बोलने के लिये कहा गया।आपको समोसे मे धन्ना सेठ के रूपयों की बू या बदबू जो भी आ रही थी आप उसी समय कहते तो बहुत अच्छा लगता।आप वंही पर बताते कि आपके अलावा और कौन-कौन जबरद्स्त ब्लागर है तो बहुत से लोग अपनी-अपनी पोस्ट पर आपके यशगान मे रहमान को बीट कर चुके होते।किसे ढोकर लाया गया है ये बता देते तो आपको हाथों-हाथ उठाया लिया जाता।मगर मुझे मालूम है आपको ज्यादा प्रशंसा प्यारी नही है।खैर जाने दीजिये आपको न सही,मुझे नही सही,जबरदस्त को न सही,जबरद्स्ती को न सही बाकी लोगों को तो बहुत से काम है।बाकी फ़ुरसत मिलने पर फ़िर लिखेंगे।तब तक़ के लिये सभी असली ब्लागर भाईयों को इस जबरदस्ती ब्लागर का नमस्कार।पढना और जबरद्स्ती कमेण्ट भी करना।हा हा हा हा हा।
अब पता चल रहा है कि ब्लागर दो प्रकार के होते हैं,जबरदस्त और जबरदस्ती!ब्लागरों को ढोया जा सकता है और उन्हे दिखा कर बल प्रदर्शन किया जा सकता है!
34 comments:
भाई जी अब बता भी दें की ये जबर्दस्त ब्लोगर कौन है
सटीक प्रतिक्रिया
मुझे भी उत्सुकता है कि प्रेस प्रतिनिधियों, टी ब्यॉज़, फोटोग्राफरों के अलावा कौन था जो ब्लॉगर नहीं?
वहां उपस्थित 34 ब्लॉगरों के नाम, ब्लॉग-पते, फोन नम्बर तो मेरे ही पास हैं। उस समय के सभी फोटोग्राफ्स भी हैं। आपको कुछ अनोखा पता चले तो बताईएगा।
अनिल भाई,
एक बार कवि सम्मेलन चल रहा था...एक कवि महोदय को बहुत दिनों बाद अपना गला साफ़ करने का मौका मिला था...अब लगे पकाने...एक घंटा...दो घंटा...तीन घंटा...लेकिन कवि महोदय का पकाऊ कार्यक्रम जारी रहा...कवि महोदय मंच से फुल वोल्यूम में जारी थे कि एक बड़े मियां ने लाठी ठकठकाते हुए मंच के आस-पास इधर से उधर, उधर से इधर घूमना शुरू कर दिया...ये देखकर कवि महोदय को थोड़ी बेचैनी हुई...आखिर पूछ ही लिया...बड़े मियां
कोई दिक्कत...बड़े मियां बोले...नहीं मियां, तुमसे भला किस बात की दिक्कत...तुम तो हमारे मेहमान हो, चालू रहो...मैं तो उसे ढूंढ रहा हूं, जिसने तुम्हें यहां आने का न्योता दिया था...
(रात को ब्लॉगवुड के लेटेस्ट और सबसे फैशनेबल ट्रेंड पर पोस्ट लिखूंगा, पढ़िएगा ज़रूर...)
जय हिंद...
:) padh ke mera bhi dil garden garden ho gaya bhaia.. :)
Jai Hind
नई जानकारी मिली. :)
"ब्लागर भी दो प्रकार के होते हैं। एक जबर्दस्त और दूसरा जबरदस्ती।"
अनिल जी, ब्लॉगरों का इस वर्गीकरण के बारे में अपने को तो जानकारी ही नहीं थी।
दुनिया में हर चीज दोहरी है :)
वैसे ये नयी व्याख्या सुनने मिली जबर्दस्त और जबरदस्ती . जबरा और जबराइल
shandar lekin jan na mai bhi chahunga ;)
जबरदस्त, जबरदस्ती के अलावा जबरिया को काहे छोड़ दिये भाई?
आगे की कथा के इंतजार में!
vaah janaab, vaah, ab raaj khol hi dijiye
आपकी इस पोस्ट से तो द्वैतवाद ही सिद्ध हो रहा है.
रामराम.
हमारे धोबी ने भी अपनी मोटर साइकिल पर प्रेस लिखा रखा है . कहता है १००,१०० कपडे पिरेस रोज़ करत है तो ससुर पिरेस भी ना लिखे का
ज़बरदस्त ... पोस्ट।
हमें तो कुछ ब्लोगर ज़ब्बर , कुछ गब्बर नज़र आते हैं।
@डाक्टर महेश सिन्हा
जबरा और जबराइल :)
.... पहेलियों का सिलसिला न जाने कब तक चलता रहेगा......... "समौसा,चनाबूट,मूंगफ़ल्ली" ...आखिर इस पहेली को लोग कब तक बूझते रहेंगे ....!!!!
ये नई जानकारी आपसे ही मिली,
किसे कौन ढोकर लाया? और क्यों लाया?
आगे की कथा का ईंतजार है।
आभार
Bahut achha blog. Very informative. Thanks
अनिल भाई , आजकल तो लगता है हवा ही उल्टी दिशा में बह रही है , और सब सामने वाली चीज़ों को अपने अपने रंग के चशमे से देख रहे हैं ....कमाल तो ये है कि ढूंढने वाले ...अच्छी से अच्छी बातों में भी बुरे से बुरा एंगल ढूंढ लेते हैं । मगर आखिरकार है तो हिंदी ब्लोग्गिंग ...ही इसलिए सबको सबका सच और झूठ..नीयत और बदनीयती भी बखूबी पता चल जाता है ....
अजय कुमार झा
श्याम ये पहेलियां नही है,एक जबरदस्त ब्लागर का मीट पर किया गया कमेण्ट है।अगर आपने नही पढा तो मैं इसका लिंक आपको भिजवाने की व्य्वस्था करता हूं।सारी पहेलियां समझ आ जायेंगी।
ललित बाबू आप तो गज़ब कर रहे हैं,क्या आप मीट मे नही थे?क्या आपने किसी को किसी को ढोकर लाते देखा?और ज्यादा जानकारी के लिये आप दूरभाष पर भी सम्पर्क कर सकते हैं जो आजकल पता नही क्यों टूट सा गया है।
अनिल जी, आप छोड़ते नहीं हैं.....बढ़िया है....लेकिन ब्लागरों को इस तरह वर्गीकृत किया जाता है ये तो हमें नहीं मालूम था।
भाईसाहब उदाहरण भी दे देते तो अच्छा रहता हम जैसे मूड बुद्धि के ब्लोगर के लिए.
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जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
वैसे अब आपके गले के क्या हाल हैं??
" padhker maza aagaya sir ..arey nahi nahi padhker dil garden garden ho gaya "
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
अनिल भाई !
मैं कुछ हद तक श्याम भाई से सहमत हूँ , हम जैसे लोग जो व्यक्तिगत ग्रुप्स और लडाइयों में शामिल नहीं हैं , इंगितों को समझ नहीं पते हैं, साफ़ और नाम लेकर लिखें तो कुछ नेताओं के बारे में पता तो चले और आप जैसे से उम्मीदें अधिक होती हैं !
सादर
बड़ी जबरदस्त जबरियायी!!
जबरदस्त (जबरदस्ती नहीं)
:)
मै समझता हूं शायद ज़रूरत से ज्यादा लिख बैठा इस मामले पर।शायद उस मीट से बहुत ज्यादा लगाव था जो उस पर पड़े छींटे सह नही पाया।मूलतः गुस्सैल होने के कारण शायद प्रतिक्रिया कर बैठा जो नही करना चाहिये थी।खैर जाने दिजीये 500 रू के खर्च को भी जो प्रायोजित समझ लेता है उसके लिये ईश्वर से प्रार्थना करना ही बेहतर है।वैसे भी जिस तरह से लोग आपस मे उलझ रहे हैं उसे सुल्झाने की बजाय मेरा भी उसमे शामिल होना अच्छा नही रहेगा।आप लोगों का प्यार है जो इस आभासी दुनिया को जोड़ कर रखे हुये है,वरना हम जैसे लड़ाके तो इसे कब से जंग का मैदान बना देते।मेरा पहेलिया बुझाना मकसद नही था मैं नही चाहता था कि किसी का नाम लेकर लिखू मगर मैं उनकी कही सारी बाते या आरोप भी आप सब के सामने रखना चाहता था।बस इस्लिये लिख तो दिया अब धीरे-धीरे गुस्सा ठंडा हो रहा है तो खुद पर गुस्सा आने लगा है कि क्या मूर्खों जैसे मुर्गा-लड़ाई मे भीड गया था। हा हा हा हा हा।
यार, तमने मिलकर यो जो रोला काट रखा है, बंद करो इसने। हम तो सोचे थे कि छत्तीसगढ़िया मिलके एक जगां बैट्ठेंगे, सुख-दुंख की बातां करेंगे। बिरादरी ने बदलणे की सोचेंगे, पर यार तम तो पाणी के नल वाड़ी लड़ाई लगाक्के बैठ गै। दिक्खो तो सारे पड्ढे लिक्खे, पर बातां कर रहे अनपढ़ के छोरे तांई। यो ब्लॉग ने बिना लैसंस का तमंचा समझ लिया, जब जी में आवे निकाड़ो और मार के भाग लो। भाया म्हारा एक याड़ी है रायपुर का, बात-बात पे कहवे है..छत्तीसगढ़िया सबसे बढ़िया। पर भाई तमने देखके तो ना लाग्गे। रार छोड्डो, इस इतवार ने फिर बैठ लो प्रेस क्लब में। समोसा मंगाओ, चाय पियो, एक-दूसरे ने सॉरी बोलो फिर गले मिलो। खत्म करो यार यो रार। दुनिया मज़ाक उड़ा री से। और चलो फिर मन्ने जल्दी से बता दो छत्तीसघड़ में यो चिल्पी जग्गे कैसी से, घूमण फिरण लाक है तो बताओ।
प्यारे अनाम भाई अच्छी सलाह के लिये आभार मगर सबको अनपढ कह देना जमा नही।मै लिख रहा हू सो मुझे कहते।दूसरी बात हमारी लड़ाई दुष्प्रचार के खिलाफ़ है गलत-सलत और बेबुनियाद आरोपों को खामोशी से सुन लेना उसे सत्यता का प्रमाण-पत्र दे देता है।ऐसे लोगों को जवाब देना ज़रुरी था इसलिये दे दिया।आपको अच्छा नही लगा उसके लिये मैं कुछ भी नही कर सकता।वैसे तो मैं अनाम लोगो को जवाब भी नही देता लेकिन इसमे आपने चिल्फ़ी के बारे मे पुछा है इसलिये आप जवाब दे रहा हूं। चिल्फ़ी घाटी सच मे स्वर्ग है और उसके आसपास प्रकृति का साम्रज्य है।कान्हा किसली भी यंही है और अभी इसके एक ओर पचराही नामक जगह मे पुरा सभ्यता के अवशेष भी मिले हैं।ये एक नया अध्याय होगा पुरातत्व की दिशा मे।आप आईये हमसे जैसा बन पड़ेगा सेवा करेंगे आपकी और आपको चिल्फ़ी की सैर भी करा देंगे।लेकिन प्रेस क्लब मे बैठ कर समोसा नही खिला पायेंगे।और न ही सभी के साथ मिलक्र बैठेंगे।अकेले मिलेंगे अकेले खायेंगे और अकेले ही घुमाने ले चलेंगे,हां आप लोग जितने चाहे आ सकते हैं।
अनिल जी, मुझे बहुत खराब लग रहा है कि मेरी टिप्पणी से आपको बुरा लगा। मज़ाक की बात थी मज़ाक में ही ले लीजिये और टिप्पणी को हटा दीजिये। मेरा मकसद कोई विवाद खड़ा करना नहीं था। विनम्र निवेदन है कि कृपया टिप्पणी हटा दें, मैं नहीं चाहता कि बेवजह बात बढ़े। चिल्पी आना है एक महीने बाद।
प्यारे अनाम भाई मुझे रत्ती भर बुरा नही लगा जब मैं दूसरे के बारे मे भला-बुरा लिख सकता हूं तो मुझे अपने लिये भी वैसा सुनने को तैयार रहना चाहिये और मैं रहता भी हूं,बस भाषा शालीन रहना चाहिये।आपने कंही भी असभ्यता का परिचय नही दिया उल्टे आपने छत्तीसगढ के लिये अपने प्रेम का परिचय ही दिया है।आपकी बात छत्तीसगढ के सभी साथियों के लिये मिसाल है इसलिये उसे हटाने का आपका आग्रह मैं नही मान पा रहा हूं।आप जब भी चिल्पी आयें आपका स्वागत है,बस एक गुज़ारिश है कि आने की सूचना दो-तीन दिन पहले दे दें तो सुविधा रहेगी।आप आईये हम ब्लागर साथी न सही मेरे मित्रों की पूरी जमात आपके स्वागत मे खड़ी मिलेगी।
ये हुई ना बात। छत्तीसगढ़िया सबसे बढ़िया।
मैं अनाम नहीं हूं। फोन करके बात करुंगा।
ब्लॉगर्स के मेल मुलाकात की जो परंपरा शुरु की
है उसे कायम रखिये, थोड़ी बहुत रुकावटें तो हर काम में आती हैं।
अरे हमारे आते आते सब ठंडा हो गया ....अभी ब्लॉग-पुलिस भेजता हूँ .....
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