Friday, February 12, 2010

जितना दबाव मीडिया ने एक फ़िल्म को रिलीज़ कराने के लिये बनाया उतना अगर महंगाई को कम करने के लिये बनाते तो शायद एक शाहरूख का नही जनता का भला हो जाता!

छोटी सी पोस्ट बेहद बड़े और गंभीर मुद्दे पर्।मीडिया पर नज़र डाले तो लगता है कि इस देश मे एक फ़िल्म को रिलीज़ कराने से बड़ी कोई समस्या ही नही है।जिस तरीके से मीडिया सरकार और कांग्रेस पर इस फ़िल्म को रिलीज़ कराने के लिये दबाव बनाती नज़र आई वो लगता है सिर्फ़ और सिर्फ़ शाहरूख की दलाली और शिवसेना को गाली देना ही था।मीडिया के तमाम दबाव के बावज़ूद जब सिनेमा मालिक तैयार नही हुये तो मीडिया का रोना और बढ गया उसे शिवसेना की जीत बर्दाश्त नही थी।इसे उसने शाहरूख वर्सेस शिवसेना की बजाय सरकार वर्सेस सिनेमा बना दिया और सरकार की आड़ मे वो अपना खेल खेलता रहा।ऐसा क्या पहाड़ टूट जाता अगर एक फ़िल्म नही दिखाई जाती?मगर मीडिया लगता है अपना वर्चस्व इसी बहाने स्थापित करने पर तुल गया था,बहाना था एक फ़िल्म और वो भी अल्पसंख्यकों के नाम की और सिर्फ़ उन्हे स्थापित करने की।अफ़सोस ही नही शर्म आती रही कई दिनो से चल रहे इस गंदे खेल को देख कर्।मीडिया जितना शाहरूख की फ़िल्म के लिये रोया उतना कभी भी वो महंगाई की मार से पिसती जनता के लिये रोता नज़र नही आया।अमूल दूध के भाव बढ जाने पर उसने लोगों की प्रतिक्रियायें नही दिखाई बस फ़िल्म नही दिखाने पर बक़वास करते रहे।दूध तो बहुत दूर की बात है आज दाल-भात खाना मुश्किल हो रहा है। सब्ज़ियां तो सपना हो गई हैं।पेट्रोल डीज़ल के दाम आसमान फ़िर बढाये जा सकते हैं मगर इन सब के बारे मे सोचने की फ़ुरसत मीडिया को शायद नही है।उसे तो फ़िल्म देखना है और लोगों को फ़िल्म दिखाना है।शायद उसे देख कर लोगों के पेट भर जायेंगे।इतनी बड़ी मुहीम आज तक़ मीडिया ने इस देश मे महंगाई के लिये नही छेड़ी पता नही क्यूं?उन लोगों का एक फ़िल्म के लिये रुदालियों के लिये रोना शर्मनाक ही नही उनकी भूमिका पर भी सवाल खड़े कर देता है।

23 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

असल मुद्दा तो इस मीडिया ने पीछे छोड़ दिया. शाहरुख पाकिस्तानियों को खिलाने के पक्ष में थे ये कहकर कि यह देशहित में होगा. शाहरुख से पूछा जाना चाहिये कि पिछले साठ सालों में हाकी-क्रिकेट खेला जा रहा है पाकिस्तान के साथ, कौन सी शांति कायम हो गयी.

दिनेशराय द्विवेदी said...

मीडिया महंगाई से लाभ उठाने वालों का चाकर जो है।

महेन्द्र मिश्र said...

महाशिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामना...

अनुनाद सिंह said...

मिडिया पाकिस्तान से भी पैसा खाता है। इसमें बहुत सारे 'पत्रकार' अन्डर्वड (जी हाँ, दाउद समझिये) के एजेन्ट हैं। इनको चौथा स्तम्भ समझने की गलती नहीं होनी चाहिये।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

शंकर जी की आई याद,
बम भोले के गूँजे नाद,
बोलो हर-हर, बम-बम..!
बोलो हर-हर, बम-बम..!!

सुन्दर आलेख..
महा-शिवरात्रि की शुभकामनाएँ!

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

कौन है आम जनता? अच्छा वही जो एक बार वोट देती है!!! एक बार वोट देने वाली जनता की चिंता किसे है, आपको, हमें.
शाहरुख़ का नाम आप जानते हैं, सरकार जानती है, मीडिया जानती है, शिक्षित जानता है, अशिक्षित जानता है, शहरी जानता है, ग्रामीण जानता है, पाकिस्तान जानता है, भारत जानता है..........!!!!!!!!!!!!!!!!!
ऐसे कद्दावर आदमी (महापुरुष) के लिए ऐसे वचन? कुफ्र बरसेगा, कुफ्र.

जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

एकदम सही सवाल उठाया है आपने. आज मीडिया के पास समय ही नहीं है किसी भी अर्थपूर्ण मुद्दे के लिए.

विनोद कुमार पांडेय said...

यहीं तो रोना है इस देश में सार्थक बातों पर बहस कम होती है जिसमें लोगो का भला हो...नकी मसाले मिले तो फिर क्या कहने..

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

और एक काम की बात तो किसी ने भी नहीं पूछी कि इस फिल्म प्रोमोशन के चाचा ने लिए कितने और भतीजे ने दिए कितने ?

cg4bhadas.com said...

sahii kaha aapne

डॉ टी एस दराल said...

अब मिडिया और राजनीति एक दुसरे के पूरक हो गए हैं।

परमजीत सिहँ बाली said...

द्विवेदी जी से सहमत....आपने सही मुद्दा उठाया है.....बढ़िया पोस्ट।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

सटीक लिखा आपने . दिल को सोचने पर मजबूर होना पड रहा है

ajay tripathi said...

जल में रह कर मगर से बैर वाला दुस्साहस आपकी कलम की धार में दिखता है प्रेस क्लब के प्रमुख याने मिडिया वर्करो के साथी और मिडिया को आएना दिखाना दुस्साहस ही तो है .ये बात साफ़ है की मिडिया कइ बार प्रमुख मुद्दों को छोड़ कर कही और किसी और का ध्यान रख वो बाते जोर शोर से लिखने लगते है जिसका जनता से कोई वास्ता नहीं होतो है .

Unknown said...

अपना काम तो जनजागरण की कोशिश करना है भाऊ…। *&%*^*$ सेकुलर हिन्दुओं को फ़िर भी कांग्रेस-वामपंथियों को वोट देना ही है…

Unknown said...

द्विवेदी जी से सहमत..

हरि शर्मा
०९००१८९६०७९
http://hariprasadsharma.blogspot.com/
http://sharatkenaareecharitra.blogspot.com/

Anonymous said...

Today so-called mainstream media is like a protitute who always wish to sleep with socalled seculars.

नितिन | Nitin Vyas said...

बढ़िया लेख!

Khushdeep Sehgal said...

अनिल जी,
कल महाराष्ट्र के शूरवीर गृह मंत्री आर आर पाटिल ने लोगों में भरोसा बनाए रखने के लिए खुद सिनेमा हॉल में जाकर 'माई नेम इज़ ख़ान' देखी...

यही आर आर पाटिल थे...26/11 हमले के बाद 29 नवंबर 2008 को इन्होंने प्रेस कांफ्रेंस में एक सवाल के जवाब में कहा था इतने बड़े शहर में ऐसे छोटे हादसे होते रहते हैं...

जनता के गुस्से के बाद आर आर पाटिल गृह मंत्री पद से हटाए गए...कुछ महीने बाद सब भूल गए...आर आर पाटिल फिर महाराष्ट्र के गृह मंत्री बना दिेए गए...

जय हिंद..

दीपक 'मशाल' said...

बिलकुल सहमत हूँ आपकी बात से.. लेकिन गलती तो हमारी ही है कि इस सब के बाद भी न्यूज़ देखते हैं.. हम देखना बंद कर देंगे वो झक मार के बेचना..
जय हिंद... जय बुंदेलखंड...

Anil Pusadkar said...

खुशदीप भाई एक और शूरवीर विलास राव देशमुख भी हैं जिन्हे अपने पुत्र और फ़िल्म वाले रामू को आतंकियो की कमीनगी का नज़ारा दिखाने के आरोप मे मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया था,उन्हे कांग्रेस ने केन्द्र मे मंत्री बना दिया।

अजित गुप्ता का कोना said...

कल से पके जा रहे थे, आज पोस्‍ट पढ़कर राहत के कुछ छीटें पड़े। मंहगाई क्‍या ये मीडिया चाहे तो देश की प्रत्‍येक समस्‍या को सुलझा सकता है लेकिन इन्‍हें तो पैसा ही उलझाने का मिलता है। एक फिल्‍म न हो गयी जैसे युद्ध जीत लिया हो। देश में कर्फ्‍यू लगाकर भी फिल्‍म दिखायी जा सकती थी वह भी आम सड़कों पर। कैसी प्रतिष्‍ठा का प्रश्‍न है यह? क्‍या देश केवल मनोरंजन के नाम पर ही चलेगा या कुछ गम्‍भीर मुद्दों पर भी मीडिया चर्चा करेगा या माहोल बनाएगा? मंहगाई से जनता त्रस्‍त है लेकिन इन मीडिया वालों को तो सब कुछ मिल रहा है कल फिल्‍म भी फोकट में देख आए तो इनके लिए कैसी मंहगाई?

Satish Saxena said...

आपका nice मैं भी अपनाना चाह रहा हूँ ! सप्ताह में कम से एक दिन हम लोग nice से काम चलायें , यह सुमन जी की इजाद के प्रति एक इन्साफ होगा और उन्हें लोकप्रियता भी मिलेगी !