Monday, February 21, 2011
नक्सली विधायक के चाचा को फ़ांसी पर लटका रहे है और सरकारें हार्डकोर नक्सलियों को छोड़ रही है!वाह क्या स्ट्रेटजी है?
नक्सलियों ने नक्सल प्रभावित बस्तर के गदापाल में सत्तारूढ विधायक भीमा मंडावी के चाचा को फ़ांसी पर लटका कर एक बार फ़िर सरकार को चुनौती दी है?हाल ही मे उन्होने अगवा किये गये पांच जवानो को रिहा किया था।अपहरण का वो मामला अभी ठंडा भी नही हुआ था कि नक्सलियों ने ओडिशा के डीएम का अपहरण कर सनसनी फ़ैला दी थी।अभी डीएम की रिहाई के लिये चर्चाओं का दौर चल ही रहा है कि उन्होने विधायक के चाचा को फ़ांसी पर लटका कर इलाके मे दहशत का साम्राज्य कायम कर लिया है। इधर सरकारें नक्सलियों से चर्चा कर रही है और उधर वे आतंक फ़ैला रहे हैं।एक डीएम का अपहरण करके उन्होने सीधे-सीधे ओडिशा की सत्ताको चुनौती दी है।पुलिस वालों को तो वे कई बार उठा कर ले जा चुके हैं मगर डीएम स्तर के अफ़सर का अपहरण पहली बार हुआ है। वे लगातार वारदात करके सत्ता को चुनौती पर चुनौती दे रहे हैं और सरकारे सिर्फ़ चिरौरी ही कर पा रही है।सबसे हैरानी की बात तो ये है कि उन्होने डीएम की रिहाई के बदले जेल में बंद अपने एक एक हार्डकोर नक्सली कमांडर प्रसादम को रिहा करा लिया है।दुर्भाग्य देखिये,कई जघन्य अपराधों का आरोपी अब सरकार के साथ होने वाली चर्चा मे मध्यस्थ के रूप मे शामिल होगा।क्या हालत होगी उसे अपनी जान पर खेलकर पकडने वालों की।अगर ऐसे ही धमकी-चमकी पर सरकार नक्सलियों को छोड़ने लगी तो फ़िर अपनी ज़िंदगी दांव पर लगाकर उन्हे पकड़ने का रिस्क कौन लेना चाहेगा।ठीक है डीएक की रिहाई ज़रुरी है लेकिन अगर सरकारें एक डीएम की रिहाई खुद आपरेशन करके नही करा पाती है और सरेंडर कर देती है तो क्या गारंटी है इस अपहरण को वे अपना हथियार नही बनायेंगे।फ़िर क्या बार-बार झुकेगी,झुकेगी क्या लेटेगी सरकार,नक्सलियों के सामने? राज्य सरकारों और केंद्र के नर्म रवैये का ही दुष्परिणाम है डीएम का अपहरण।उनके बढते हौसले का सबूत है दन्तेवाड़ा के भाजपा विधायक भीमा मंडावी के चाचा को फ़ांसी पर चढाना।सवाल ये उठता है कि क्या किसी को भी इस तरह बिना न्यायिक प्रक्रिया के फ़ांसी पर लटकाने का अधिकार किसी को है?और फ़िर बात-बात पर नक्सलियों की पैरवी करने और उन्हे जेल में बंद करने पर मानवाधिकार का पिटारा खोल कर भीड़ इकट्ठा करने वालों को फ़ांसी पर लटकाना मानवाधिकार का उल्लंघन नही दिखता?कंहा है नक्सलियों की दलाली करने वाले समाज के हाईप्रोफ़ाईल लोग?एक आदमी को खुले आम पर फ़ांसी पर लटका दिया गया और सब खामोश है?इनमें से कुछ तो फ़ांसी की सज़ा को अमानवीय ठहरा कर उसे बहस का मुद्दा बना चुके हैं।अब क्यों बोलती बंद है उनकी। केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों को एक बार फ़िर सोचना होगा कि इस तरह किसी को भी बंधक बनाकर नक्सली अपने दुर्दांत साथियों को रिहा कराने में सफ़ल होते रहेंगे तो उनकी फ़ोर्स के मनोबल पर इसका विप्रित प्रभाव पड़ेगा।और फ़िर जो लोग बातचीत के लिये हामी भरकर भी हिंसा किये जा रहे हैं उनकी बातों पर भरोसा कैसे किया जा सकता है?सराकारों को इस मामले मे गंभीरता से सोचना चाहिये वर्ना अपहरण नक्सलियों का अचूक हथियार साबित होगा और फ़िर उन इलाकों मे कोई भी इसका शिकार हो जायेगा?। ।
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9 comments:
naxaliyon ke saamane sarakaar ghutane tek rahi hai.
सरकार। किस सरकार की बात कर रहे हैं आप अनिल जी। पुलिस वालों को उठाकर नक्सली ले जाते हैं, उस जगह पर मीडिया हो आती है, दिल्ली से उडकर अग्निवेश आ जाते हैं पर सरकार नहीं जा सकती उस स्थान पर।
विधायक के चाचा को फांसी। क्या नक्सली सिर्फ इतना ही कर सकते हैं कुछ और नहीं कर सकते। वे जो चाहते हैं कर सकते हैं। कुछ समय पहले तक आम पुलिस वाले उनके शिकार होते थे फिर उन्होंने ठाना और एक पुलिस कप्तान को निशाना बना लिया। बस्तर में सांसद के बेटों को निशाना बना लिया। उडीसा में कलेक्टर को उठा लिया।
मंत्री और मुख्यमंत्री इसिलिए सुरक्षित हैं क्योंकि नक्सलियों का उन्हें निशाना बनाने का कोई मूड नहीं वरना...।
(मौजूदा हालात तो देखकर तो ऐसा ही लगता है)
Anil bhai,
Ek rubia saeed ki rihai ki keemat kashmir ne das saal tak aatankwad ke dansh ke roop mein chukai. Ab sarkar ki is kamjori ka khamiyaja poore desh ko salo saal tak chukana padega....
vijay Jadwni
शर्मनाक मामला।
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ब्लॉगवाणी: ब्लॉग समीक्षा का एक विनम्र प्रयास।
डीएम है इसलिये तो सरकार नक्सली को छोड़ देगी, आम आदमी होते तो सरकारें क्या करतीं... सभी एक ही थैली के हैं..
आपके सुर में सुर मिलाकर इतना और जोड़ना चाहूंगा ......
और अब आज का गीत ......जो कि गीत कम ....एक सच्चा दस्तावेज़ अधिक है ...
बीजिंग से
माओवाद के सुर में जहां रोकर भी है गाना
पता बारूद की दुर्गन्ध से तुम पूछकर आना .
बिना दीवारों का कोई किला ग़र देखना चाहो
तो बस्तर के घने जंगल में चुपके से चले आना.
धुआँ बस्तर में उठता है तो बीजिंग से नज़र आता
हमारे खून से लिखते हैं माओ का वे अफ़साना.
वे लिख दें लाल स्याही से तो ट्रेनें भी नहीं चलतीं
कटीले तार के भीतर डरा-सहमा पुलिस थाना .
यहाँ इस देश की कोई हुकूमत है नहीं चलती
कि बंदूकों से उगला हर हुकुम सरकार ने माना .
जो रखवाले थे हम सबके वे अब केवल उन्हीं के हैं
नूरा कुश्तियों में ही ये बंटते अब खजाने हैं .
हमने ज़िंदगी खुद की खरीदी तो बुरा क्या है
यहाँ सरकार भी उनको नज़र करती है नज़राना .
भैया ये कंधार कांड Jaisa हैं.
जैसे पाकिस्तान के Atankwadi अपने 'Sathiyo को Chhudane के लिये पुरा विमान को Apharan कर के अपने' Sathiyo के chhudate हैं.
भैया ये कंधार कांड Jaisa हैं.
जैसे पाकिस्तान के Atankwadi अपने 'Sathiyo को Chhudane के लिये पुरा विमान को Apharan कर के अपने' Sathiyo के chhudate हैं.
शठे शाठ्यम् समाचरेत।
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