Thursday, December 1, 2011
महंगाई से निपटने के लिये विदेशी कम्पनी बुला रहे हो,तो आतंकवाद,नक्सलवाद,अलगाववाद से निपटने के लिये सीधे अमेरिका को ही ठेका दे दो.
देश में भयंकर बहस चल रही है.टीवी पर हो रही गर्मागरम बहस को सुनकर कल्लू पनवाडी और मटल्लू हलवाई भी अपने अपने हिसाब से और अपनी अपनी पसंद की साईड से ज़बरदस्त फिल्डींग कर रहे है.बाज़ार बंद है.सब फ्री होकर बहस में मारकाट करने पर उतर आये है.शुरु मे इस एफडीआई का विरोध करने के बाद बडे-बडे विद्वानो के तर्क़ और सरकार के अडियल रवैये को देख कर हम भी कन्फ्यूज़िया गये हैं.समझ में नही आ रहा है कि इससे असली फायदा किसको होगा.खैर अगर सरकार का एफडीआई के लिये ये तर्क़ है कि उस्के आने से महंगाई कम होगी.यानी महंगाई रोक पाने में अब तक़ असफल रही निकम्मी सरकार ये मानती है कि विदेशी ही इस समस्या से मुक्ति दिला सकते है तो फिर आतंकवाद,नक्सलवाद और अलगाववाद से निपटने में भी आज तक़ असफल ही रही सरकार को चाहिये कि वो देश की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा को भी विदेशियों यानी अमेरिका को सौंप देना चाहिये.उस फैसले का विरोध होगा या नही पता नही मगर आये दिन के धमाको से,लाशों के लोथडे बिनने से,अनाथ होने वालों के आंसूओ से,फर्ज़ी सरकारी चेतावनियों और दहाडो से तो मुक्ति मिलने की गारंटी है.पर हां इसमें पूंजी और निवेश और घोटाले की तो कोई गुंजाईश ही नही है.कोई इसमे पार्टनरशीप भी नही मिलने वाली.शायद इसिलिये इस ओर ध्यान नही दे रही है सरकार.मरते रहे लोग धमाकों में.और फिर ये सरकार धीरे धीरे अलग अलग टुकडे-टुकडे में क्यों बेच रही है सरकार.सीधे सीधे देश को ही किसी विदेशी ताक़तवर देश के पास गिरवी क्यों नही रख देती.युनियन जैक के बाद अंकल सैम को सलाम कर लेंगे हम. (परम विद्वान साथियों से करबद्ध निवेदन है कि मेरे शब्दों पर नही मेरी भावनाओं की कदर करें.एफडीआई अब गली मुहल्ले.चौराहो पर हो रही बहस में कुतर्क़शास्त्रियों के मुखरविंद से अइसे ही धांसू-फांसू टाईप के आईडीया सामने आ रहे है.हर गली में अब हाईटेक सिंग मिल रहे है थोक के भाव में सरकार चाहे तो उनसे भी सलाह ले सकती है,फायदा हो या न हो,कम से कम ऎसी फज़िहत नही होने की सौ प्रतिशत गारंटी.)
Labels:
america,
foriegn investment,
naxal,
terrorism.विदेशी पूंजी,
अमेरिका,
आतंकवाद,
एफडीआई,
नक्सलवाद,
महंगाई
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
5 comments:
विकार बुरा नहीं है।
हम आपकी भावनाओं की कद्र करते हैं।
जाने कहां से यह मुद्दा टपक लिया! ध्यान बटाऊ मुद्दा लगता है - पक्ष-विपक्ष की साझा नूरां कुश्ती!
आपसे निवेदन है इस पोस्ट पर आकर
अपनी राय अवश्य दें -
http://cartoondhamaka.blogspot.com/2011/12/blog-post_420.html#links
मुद्दे ही मुद्दे, विपक्ष व्यस्त है।
Post a Comment