Friday, December 4, 2009

मैंने इससे पहले खुद को इतना बेबस और लाचार कभी नही पाया था!

सारी रात खांसते-छिंकते बीती थी और बड़ी मुश्किल से सुबह सुबह नींद लगी थी कि मोबाईल ने घनघनाना शुरु कर दिया। लगातार बज़ रहे फ़ोन ने अज़ीब सी खीज़ पैदा कर दी थी और दुनिया भर की गालियां बक़ते हुये मैने फ़ोन को देखा तो एक नही कई मिस्ड काल नज़र आ रही थी,सभी एक ही नम्बर से थी।बापू के नाम से थी वे सारी काल्ज़।बापू मेरे स्कूल का दोस्त जिसका सरनेम गांधी होने के कारण उसका नाम ही बापू पड़ गया था।उसका फ़ोन काफ़ी समय बाद आया था और लगातार कई काल्ज़,मुझे समझ मे आ गया कंही न कंही,कोई न कोई गड़बड़ ज़रूर है।सो मैने फ़ोन बज़ते ही काल रिसीव की और पूछा बापू क्या बात है कुछ गड़बड़ तो नही है?इस पर उसका जवाब था कुछ नही बहुत गड़बड़ है,तू सीधे इस अस्पताल आ जा।मैने कुछ नही कहा और आने की बात कह कर उठा और तबियत खराब होने के बावज़ूद तैयार होकर निकल पड़ा था अस्पताल की ओर।



रास्ते मे फ़िर फ़ोन बज़ा तो मैने कहा बापू वंही आ रहा हूं।पर उधर से बापू ने नही उसकी भांजी ने जवाब दिया कि मामाजी आप प्लीज़ डाक्टर से प्यार से पूछना?पापाजी ठीक हो रहे हैं थोड़ी एक्स्ट्रा केयर उन्हे ज़ल्द ठीक कर देगी।मैने कहा बेटा मैं वंही आ रहा हूं।वो फ़िर बोली मामाजी कंही प्रेस वालों को देख कर अस्पताल वाले हाथ खडे ना कर दे।मैने कहा बेटा चिंता मत करो मैं वंही आकर बात करता हूं।बापू के जीजाजी शहर के बाहरी हिस्से मे बने एक नये सुपर स्पेशलिटी अस्पताल मे भर्ती थे।

मैं वंहा पहुंचा तो बापू बाहर ही खड़ा था।हम लोग नीचे रिसेप्शन मे ही बैठ गये।मैने पूछा क्या बात है बापू?वो पूरी तरह टूटा हुआ था।उसने गहरी सांस ली और कहा यार मेरी समझ मे कुछ नही आ रहा है।मै न चाहते हुये भी सब समझ गया था।मैने पूछा भांजी कंहा है,वो बोला वो पाठ करने बैठ गई है।मैने पूछा डाक्टर क्या कह रहा है?वो बोला हम लोगों से ज्यादा भांजी बात करती है और डाक्टर की तसल्ली भी दमदार नज़र नही आ रही है।वो बोला मैने तेरे को इसिलिये बुलाया है तू एक्चुअल पोज़िशन पूछ और अगर वाकई एक्स्ट्रा केयर की ज़रूरत है तो उसके लिये बोल दे!वो बोला यार ये बच्चे लोग भी समझते नही है।बीस दिन हो गये हैं।न हील डुल रहे हैं,न होश मे आ रहे हैं,वेंटिलेटर पर हैं।अस्पताल का बील तेजी से बढ रहा है।जीजाजी के घर के सामने वाली सड़क पर अंडरब्रिज बन जाने से दुकान का भट्ठा बैठ गया है।इससे पहले एस्कार्ट्स मे भर्ती थे।इससे पहले भी जीजाजी का लफ़्ड़ा तूने ही निपटाया था।उस समय भी अच्छी-खासी प्रापर्टी उस समय लूटा चुके थे।बस इतना समझ ले हालत बहुत अच्छी नही है।

मुझे कुछ समझ नही आ रहा था।मैने सीधे डा अजय को फ़ोन लगाया और उसे सारी बात बताई।उसने कहा तू वंही बैठ मैं पूछ कर बताता हूं।तीन-चार मिनट बाद ही उसका फ़ोन आ गया और उसने कहा कि पेशेंट की हालत बहुत ज्यादा खराब है,तू तो समझता है एक्स्टरनल सपोर्ट पर चल रहे हैं।रिकवहरी मुशकिल दिख रही है।बीमारी कोई भी बची नही है।भर्ती हुये थे मलेरिया के लिये,फ़िर कार्डियक प्राब्लम,फ़िर रीनल और बाद मे ब्रेन भी डेमेज़ हो गया है।एज फ़ैक्टर भी है।मेरे ख्याल से तो तू उनको समझा और घर ले जा।अब जो होना है वो अस्पताल मे भी उतना ही संभव है जितना घर पर्।मुझे लगा जैसे कान सुन्न होते जा रहे हैं।इतना सब डाक्टर ने मुझे बता दिया वो मैं उस लड़की को कैसे बता पाऊंगा,जो हर वक़्त भगवान से अपने पिता की सलामती चाह रही थी।
मैं सोच ही रहा था कि रिसेस्पशन से हमारे लिये अनाऊंस हुआ, डाक्टर बुला रहे थे।अजय ने उन्हे बता दिया था,मैं रिसेप्शन मे बैठा हूं।अंदर एक नही कई डाक्टर बैठे थे।इससे पहले मैं या डाक्टर कुछ कहते बापू शुरू हो गया ये मेरा स्कूल का दोस्त है।इसको पता लगा तो ये बस मिलने चला आया।मैने इसको बताया कि आप लोग बहुत मेहनत कर रहे हैं।भांजी ने भी आपलोगों की बहुत तारीफ़ की है।डाक्टर और मैं सारा माज़रा समझ चुके थे।उसने कहा अनिल जी देखिये लोगों की एक्स्पेक्टेशन बहुत रहती है?मैने कहा हां आजकल कुछ ज्यादा ही हो गई है और शायद इस्लिये रियेक्शन भी बहुत होते हैं,लेकिन यकीन मानिये ये लोग उनमे से नही है।उसने कहा कि डा अजय को मैने सब बता दिया है।हम लोग तो पेशेंट के लिये उम्मीद छोड़ नही सकते लेकिन यंहा उनकी बिटिया को कुछ ज्यादा ही उम्मीद है।वो आयुर्वेदिक,होम्योपैथिक और पता नही क्या-कया इलाज साथ मे करना चाह रही है हमने उसे मना भी नही किया है।हम लोग चाय पीने के बाद उठे तो डाक्टर ने मुझसे कहा सब तो समझ गये हैं लेकिन उनकी बिटिया नही समझ पा रही है।तब तक़ बापू बाहर निकल चुका था।डाक्टर ने कहा हो सके तो आप उसे समझाईये।मैने कहा ट्राई करता हूं और मै बाहर निकल गया।

मैने बापू से कहा मैं शाम को आता हूं।फ़िर बात करेंगे।बापू की आंखों में डर के साथ-साथ दुखः का समदंर उमड़ रहा था।मै उससे आंख मिला कर विदा भी नही ले पाया।उसने कहा फ़ोन करना और आना पक्का।मैंने उसका फ़ोन उठाना बंद कर दिया है पता नही कब गलत समाचार आ जाये।दोबारा अस्पताल भी नही गया,उस लडकी से सामना करने की हिम्मत नही हो पा रही थी जो हर वक़्त अपने पिता को अच्छा होने की आस लिये संघर्ष कर रही थी।डा की बात भी मेरे दिमाग मे उथल-पुथल मचाये हुये थी,क्या अब मरीज के रिश्तेअदारों को उम्मीद भी नही करना चाहिये?मै उस लड़की को कैसे समझा सकता था कि बेटा अब तुम्हारे पापा नही बचेंगे।इन्हे अस्पताल से घर ले चलते हैं?क्या ये इतना आसान है?बहुत कठोर और पत्थर दिल समझता था मै अपने आप को लेकिन जब मामला अपना होता है तो शायद सब कुछ बदल जाता है।मैंने इससे पहले खुद को इतना बेबस और लाचार कभी नही पाया था!

27 comments:

Unknown said...

अनिल जी, जीवन में कभी कभी ऐसे मौके भी आते हैं किन्तु अच्छा हो या बुरा, झेलना तो पड़ता ही है। आप फोन उठाना बंद मत कीजिये और इस विपत्ति की घड़ी में उनका साथ दीजिये। बापू की भांजी को तसल्ली देना सबसे बड़ा काम है जो कि, मुझे विश्वास है कि, आप अवश्य ही अच्छी तरह से कर सकते हैं।

तत्काल ही उनके पास जाइये।

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

अनिल भाई, बहुत ही दुखद, ऐसे समय मे मरीज के परिवार वालो को सच बताना या बोलना कितना कठिन हो जाता है ना?

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

मार्मिक, साथ ही यह भी दर्शाता है कि बेटी का अपने पिता से कितना लगाव होता है ! बेटा होता तो शायद वह भी उसी लाईन में सोचता, जो साले साहब , यानी बापू सोच रहे थे !

अनिल कान्त said...

आपने सच ही कहा ऐसे समय में खुद को कुछ नही सूझता और ना ही ये समझ आता कि उस सामने वाले इंसान को क्या समझायें

jitendra said...

sir ji aap to patrakarita ke mahanaayak hain to phir dar kaisa aur himmat haarnaa ...........................?



mujhe ummid hain ki aap jaroor kucch hal nikaal lenge

संजय बेंगाणी said...

क्या टिप्पणी दूँ?

मन भारी हो गया है.

Anonymous said...

जब मामला अपना होता है तो शायद सब कुछ बदल जाता है।

कितना सही है आपना कहना

Arshia Ali said...

आप फिर से मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ हों, हमारी यही कामना है।
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सांसद/विधायक की बात की तनख्वाह लेते हैं?
अंधविश्वास से जूझे बिना नारीवाद कैसे सफल होगा ?

दिगम्बर नासवा said...

जीवन में कभी कभी ऐसे पल आते हैं ........... हिम्मत रखना और हिम्मत बंधाना ये सबसे ज़्यादा ज़रूरी होता है ऐसे में ........

Gyan Dutt Pandey said...

समझ में आती है यह दशा!

Chandan Kumar Jha said...

अब तो बस प्रार्थना हीं की जा सकती है ।

उम्मतें said...

दुखद !

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

झूठी तसल्ली की बजाय साफ़-साफ़ कह देना अच्छा होता है ताकि सेंटिमेंटल की बजाय प्रेक्टिकल होकर सोंचे। वेंटिलेटर से वापस आना मुम्किन नहीं और जेब से पैसे भी चले जाय़ं, यह कोई दानिशमंदी तो नहीं कही जाएगी।

अन्तर सोहिल said...

समझ सकते हैं जी आपकी वेदना
सम-परिस्थिति झेल चुका हूं

Udan Tashtari said...

अति दुखद...बस, यहीं आकर तो इन्सान बेबस हो जाता है.

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप की बेबसी और लाचारी समझी जा सकती है। लेकिन कृत्रिम सांस पर एक व्यक्ति को कष्ट पाते हुए जीवित रखना और एक मिथ्या आशा को जीवित रखना भी तो ठीक नहीं है। ये क्षण ही हैं जब हमें भावुकता को त्याग कर साहस करते हुए कठोर निर्णय लेने पड़ते हैं।
मुझे पता है मेरे एक साथी वकील को कैंसर हो गया था। डाक्टर ने जवाब दे दिया और यह भी कहा कि इन्हें मुंबई ले जाया जा सकता है। हम जानते थे मुंबई मे कुछ भी हासिल होने के बजाए केवल उस परिवार पर हम लाखों का कर्ज बढ़ा कर आएंगे। तब महेश जी गुप्ता ने यह साहस दिखाया था कि साथी की पत्नी से अकेले में यथार्थ बताया। चिकित्सकों को कहा कि इन्हें यहीं रखा जाए। दूसरे ही दिन साथी ने विदा ले ली।
इस पोस्ट में जो सब से बड़ी विडम्बना दिखाई दे रही है वह है विकास किस तरीके से लोगों को रोंदते हुए चलता है। एक फ्लाई औवर ने एक अच्छे भले व्यक्ति को बेरोजगार बना दिया। हम वास्तव में अनियोजित विकास के शिकार हैं। कभी यह नहीं सोचते कि इस विकास के शिकार लोगों का क्या होगा? वस्तुतः महाजनी युग कुछ भी सोचने देता नहीं है।
सचाई देर सबेर भांजी को पता लगनी है। यदि न भी लगी होगी तो इस पोस्ट के बाद पता लग चुकी होगी। अच्छा तो यही है कि जितनी जल्दी हो साहस कर के सच को उद्घाटित कर दिया जाए। उस सच से जिन्हें तकलीफ होनी है वह तो दो दिन बाद भी होनी है पर समय पर सच उद्घाटित हो जाने से अनेक दूसरी हानियों और तकलीफों से बचा जा सकता है।

डॉ महेश सिन्हा said...

विज्ञानं की उन्नति से सभी की उम्मीदें भी काफी बढ़ गयी हैं .
कई बार समझाना मुश्किल हो जाता है .

विनोद कुमार पांडेय said...

कभी कभी जीवन में ऐसे हालात आ जाते है जहाँ हम बेबस हो जाते है और अक्सर ऐसी परिस्थितियाँ अपनों के लिए और अपनो के द्वारा ही उत्पन्न होती है...भगवान उस परिवार को साहस दे ...
हम सब दुआ कर रहे है जो बेहतर हो उनके लिए भगवान उनकी सहायता करें

Arvind Mishra said...

ओह !

राज भाटिय़ा said...

अनिल जी आप की पोस्ट पढ कर मां का चेहरा मेरे सामने आ गया... जिसे सब डाकटरो ने जबाब दे दिया था, ओर उन का तडपाना भी नही देखा जा रहा था, दिल कहता था मां जिन्दा रहे दिमाग कहता था इस से अच्छा अब चली जाये......
आप फ़ोन काल जरुर सुने ओर जरुर बापू के यहां जाये, उसे बहुत सहारा मिलेगा, ओर फ़िर धीरे धीरे उसे सारी बात बता दे, बिटिया को भी प्यार से धीरे धीरे समझाये, यही वक्त होता है अच्छे ओर बुरे दोस्तो कि परख का, अब भी देर नही हुयी आप जाये ओर दोस्त को आप का सहारा चाहिये

Smart Indian said...

दिल पसीज गया यह घटना सुनकर. मन को कितना भी समझा लें की जो आया है उसे एक दिन जाना ही है, असलियत में यह परम सत्य स्वीकारना सबसे कठिन है. मैं नहीं जानता उस बिटिया को आपने कैसे समझाया होगा. मगर इतना ज़रूर है कि एक महीना पहले मेरे दिल का एक टुकडा इन सभी परिस्थितियों से गुज़रकर अब वापस सही-सलामत हो गया है. इसलिए अगर डॉक्टर जुटे रहें तो ऐसी कठिन स्थिति में भी उम्मीद बंध सकती है.

संगीता पुरी said...

मन काफह दुखी हो गया .. ईश्‍वर से सारी परिस्थितियों को नियंत्रित करने की प्रार्थना कर रही हूं !!

Khushdeep Sehgal said...

अनिल भाई,
ऐसे हालात में द्विवेदी सर के कहे पर चलना ही एकमात्र विकल्प है...ईश्वर से प्रार्थना है कि बिटिया को हर हाल से निपटने के लिेए संबल दे...

जय हिंद...

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

आदरणीय अनिल भैया......

मैं इस सिचुअशन को समझ सकता हूँ...... मेरे साथ भी ऐसा ही हो चुका है..... जब मेरे फादर हॉस्पिटल में भर्ती थे..... पर मुझे भी डॉक्टर ने ऐसा ही कहा था..... पर क्या कर सकता था..... ? बहुत मार्मिक पोस्ट है..... पढ़ कर मैं फील कर रहा था..... रोना भी आ रहा था.......

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आपकी तबियत कैसी है अब?

ख्याल रखियेगा अपना.....

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वास्तव में ही दुरूह स्थिती है भाई समझ सकता हूं. पर यूं बैठने से भी चलेगा तो नहीं न. सामना तो करना ही होगा.

शरद कोकास said...

संवेदनायें अपनी जगह हैं और ज़िन्दगी की सच्चाइयाँ अपनी जगह ।

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

अनिल जी ऐसी विकट परिस्थितियों से ना चाहते हुए भी जूझना ही पड़ता है |