Friday, March 5, 2010

इश्क़ मे ज़ालिम तेरे हमे रिक्शा तक़ चलाना पड़ा मगर तू है के फ़िर भी ………………

कह्ते है इश्क़ निकम्मा बना देता है लेकिन हमने इसे झूठलाते हुये रिक्शा तक़ खींच डाला।मगर हाय रे किस्मत!सालों साल से सिंगल होने का ताना सहते-सहते परेशान होने के बाद एक रोज़ अंदर से हूक उठी और हमने भी एलान कर दिया कि बहुत हो गया ये सिंगल होने का नया शब्दार्थ आवारा या छुट्टा सांड सुनते-सुनते।अब हम भी डबल हो जाते हैं।दोस्तों ने कहा कि तेरे लिये तो देर आयद दुरूस्त आयद भी नही कह सकते।मैने पूछा क्यों तो डाक्टर का जवाब था समझ ले तू एक्स्पायरी डेट की दवा है।
इस बात पर कुछ दोस्त हमारे समर्थन मे आ गये।उन्होने डाक्टर को शहर के पुराने पके हुये आमों की लिस्ट सुना दी।इस पर डाक्टर बोला वो तो ठीक है मगर इसको तो ताज़ी सब्जी होना और ये खरीदने निकला है शाम को।अब तो जो है सो है।वैसे भी बैगर्स आर नाट द चूज़र्स।ये सुनकर मैं भड़का और बोला अबे बेगर्स किसको कह रहे हो।सबने बीच-बचाव करके मामला ठंडा किया और डाक्टर ने कहा वो तो उदाहरण था।मैने कहा कोई उससे अच्छा और कोई नही मिला क्या?तो डाक्टर ने कहा कि बेटा समझ ले तो सेल मे लटक गया है।किसी ज़रूरतमंद को पसंद आया तो ठीक नही तो लटके रहना!और हां इसमे च्वाईस से लेकर प्राईज़ और सारी कंडिशन तेरी नही खरीददार की रहेगी।
इस पर मणी भाई,पुराने दिलफ़ेंक सत्येन्द्र,जयंती लाल,राजकुमार और डा गोपाल ने कहा अरे छोडो डाक्साब्।अपना लीडर आज भी 50 बट लुक्स थट्टी है।कंही भी खपा देंगे।अब डाक्टर भड़का सालो मुझे कहते हो लीडर की इज़्ज़त का ख्याल करो और उसे खपा दोगे कहते हो।अबे क्या वो खोटा सिक्का है?सिर्फ़ घिस गया है समझ मे नही आता कौन से सन का है बाकी सब तो ठीक ही ना?अब मै बोला बस डाक्साब आपका और बाकी भाईयों का प्यार देख कर मेरी आंख से इस गर्मी मे भी म्यूनिसिपाल्टी के नल की तरह आंसूओ की धार बह निकलेगी।समझ मे नही आता आप लोगों का शुक्रिया कैसे अदा करूं।आप जैसे दोस्त हों तो फ़िर दुश्मनों की क्या दरकार!
मैने इस ग्रुप से छुटकारा लिया और सीधे पहुंचा प्रेस क्लब्।वंहा अपनी चंडाल चौकडी को तलब किया और उनके सामने अपनी समस्या रखी।पहली बार मुझे प्राब्लम में फ़ंसा देख साले ऐसे खुश हुये जैसे जाल मे फ़ंसे हुये शेर को देख कर चूहा खुश हुआ था।तीनों मे सबसे खुराफ़ाती प्रभूदीन गुप्ता ने कहा गुरूदेव ये तो नक्सलवाद से भी बडी समस्या है।मैने जैसे ही उसे घूर के देखा,शिशुपाल त्रिपाठी और दुर्योधन शुक्ला ने उसे डांटा और कहा कि तू चुप रह बे भैया सीरियस दिख रहे हैं और तू मज़ाक कर रहा है।अब प्रभूदीन भड़क गया।वो बोला मैं मज़ाक कर रहा हूं।बेटा अपन तीनो की शादी कैसे हुई पता है ना।अगर सच बोलकर ट्राई करते ना तो किसी सेल मे भैया के बगल वाले हैंगर पर ही लटके मिलते।
अबे चुप कर और दिमाग लगा और मामला सुलझा।प्रभुदीन को तो मौका मिल गया था।वो बोला क्यों अपने मामले अपन लोगों ने खुद निपटाये थे ना।मैं तो गुप्ता होकर ठकुराईन को भगा लाया था।दम है तो भगा लाये किसी को?मैने कहा अबे चैलेंज़ मत कर?प्रभुदीन बोला गुरूदेव चैलेंज़ स्वीकारने का टाईम पूरा हुये ज़माना गुज़र गया है।अब तो बस किसी को बहला-फ़ुसला को फ़ंसा लो तो हो सकता है आपकी ये अंतिम इच्छा पूरी भी हो जाये।
मौका देख कर शिशुपाल और दुर्योधन बोले तो बता ना कोई आसान तरीका।वो बोला भैया देखो यंहा के लोकल लोग तो आपको जान गये है कि आप बजरंगी हो और थोड़े से खसकी भी।मैने जैसे ही कुछ कहना चाहा तो वो बोला अगर मामला सुलझना है तो गाली-गलौज़ और धमकी-चमकी नही चलेगी।मैने फ़िर से कुछ कहना तो वो बोला देख लो तुम लोग भी।तो दुर्योधन और शिशुपाल बोले गुरूदेव जाने दो गुस्सा तो अपन बाद मे भी कर लेंगे।पहले इसकी खोपड़ी का फ़ायदा उठा लेतें हैं।हम लोगों की नैया भी यही पार लगाया है।
मैने अचानक़ सुर बदला और महंगाई के इस दौर मे भी उसमे से नमक निकाल कर पूरी शक्कर उंडेल दी।मैने कहा कि बता भाई प्रभूदीन!वो बोला मदद तो मैं कर दूंगा लेकिन आप आज से बात-बात में, घर मे बता दूंगा, और ये बंद कर, वो बंद कर, तेरा लिवर खराब है, सब बंद करना पड़ेगा।मैंने उसे घूर कर देखा तब तक़ शिशुपाल और दुर्योधन दोनो बोल पड़े ठीक है ठीक है!वो बोला देखा गुरूदेव इन लोगों को मेरे से अच्छा समझते थे ना,ये साले मेरे बहाने अपना भी प्राब्लम साल्व कर रहे हैं और बता रहे हैं कि आपका प्राब्लम साल्व करा रहे हैं।
मैने भड़क कर उससे कहा बताना है तो बता नही तो मैं जा रहा हूं रूपकला ग्रूप्।वंहा तो सभी भगा-भगा कर लाये हैं।उनसे पूछ लूंगा।वो बोला गुरूदेव उस दौर मे कोशिश करते ना तो एमेरजेंसी के बाद जनता लहर मे राजनारायण टाईप जीत भी जाते।मगर अब तो टाईम निकल चुका है।मुझे भी लगा कि शायद वो सच कर रहा है।मेरे चेहरे को धीरे-धीरे बिज़ली कटौती वाले इलाके के बल्ब की तरह बुझते देख प्रभूदीन का चेहरा चमक गया।वो बोला गुरूदेव यंहा तो आपकी दाल गलने वाली नही है और महाराष्ट्र मे तो मराठी लोग तो झाड़ू भी खरीदते हैं तो कई दुकानों मे मोल भाव कर।वंहा भी मुश्किल है।मैने कहा प्राब्ल्म नही आईडिया बता साले!
वो बोला आईडिया तो है लेकिन थोड़ा कठीन है।मैं बोला बता मैं कुछ भी कर सकता हूं।वो बोला ये हमारे ज़माने का इश्क़ नही है गुरूदेव जब तेरे लिये चांद तारे तोड़ लाऊंगा और लिखता हूं खून से स्याही ना समझना,जैसे सड़ियल डायलाग पर लड़किया मर-मिटा करती थी।मैने कहा कि अब क्या हो गया है।वो बोला अब लडकिया थ्रिल चाहती है।एडवेंचर चाहती हैं।मैं बोला तू आईडिया बता।वो बोला,भड़कना मत।आजकल गुरूदेव लड्किया जो हैं ना वो फ़िल्मी स्टाईल से फ़ंसती है।एक चक्के पे बाईक तो आप चला नही पाओगे।काफ़ी-शाप मे आप सिगरेट से धुयें के छ्ल्ले भी नही उड़ा सकते,खांस-खांस कर मर जाओगे।और आपकी खांसी देख कर वो भी समझ जायेगी कि शादी डायरेक्ट विधवा होने की गारंटी है।
अबे! मैं बोला,साले तरीका बता रहा है या मौका देख कर भड़ास निकाल रहा है।वो बोला आपके साथ यही समस्या है।क्या करोगे शादी करके?बात-बात मे भाभी से अकड़ोगे और झगड़ोगे और हम लोगों को फ़िर वही समस्या सुलझाने का काम करना पड़ेगा।मैने कहा अबे वो सब छोड़ तू तरीका बता।गुरूदेव अब अपने पास बाहर से आने वाले आईटम को फ़ंसाने के अलावा कोई चारा नही है।तो!तो क्या बाहर से जो फ़्लाईट से आयेगी,उसे लेने तो कार आयेगी,बस से जो आयेगी वो भी लोकल ही होगी।अपने को रेल से आने वाले आईटम को सेट करना पड़ेगा।कैसे?वो बोला अपन सब रो रेल्वे स्टेशन के रिक्शा अड्डे पे रहेंगे और रिक्शे वालों को अच्छी सुंदर लड़की को नही बैठाने और आपके लिये छोड़ने का आर्डर कर देंगे।जीआरपी और एसआरपी वालों को भी सेट कर लेंगे आप बाहर से आई लड़की को रिक्शे में बिठा कर ले जाना और सुनसान जगह मे हम लोग उसे छेड़ेंगे।आप हम लोगों को मार कर हीरो बन जाना और देखना एक दो मामले के बाद जो पहले सेट हो जाये उसी से हिप-हिप हुर्रे।अबे इसमे तो मुझे रिक्शा चलाना पड़ेगा।तो क्या हम लोग चलायेंगे?और सुनो ये डिज़ायन वाला कुर्ता पज़ामा नही चलेगा समझे!थोड़ा रिक्शेवाला स्टाईल मे कपड़े पहनना पड़ेगा।मरता क्या ना करता सालों ने जो-जो बताया वो कर रहा हूं।और तो और प्रेस क्लब मे मेरे ही महासचिव नवभारत के छायाकार गोकुल सोनी ने तो हद कर दी।मेरी फ़ोटो खींच भी ली और नानसेंस टाईम्स मे छाप भी दी।आपको कैसी लगी मेरी ये तस्वीर और कहानी बताईयेगा ज़रुर।



26 comments:

डॉ महेश सिन्हा said...

अब तो ये गोकुल ही बता सकते हैं पीछे कौन बैठा है :)
चेले जो सहारे बैठे हैं उनका क्या होगा, क्यों संजीत

अजित गुप्ता का कोना said...

भाई अनिल जी, हम तो आपकी समस्‍या सुलझा नहीं सकते, क्‍योंकि राजस्‍थान में तो वैसे ही लड़कियों का प्रतिशत कम होता जा रहा है, लड़के आजकल जल्‍दी उम्र में ही लपक लेते हैं। आप राखी सावंत के स्‍वयंवर में क्‍यों नहीं गए, बेचारी अभी तक कुंवारी है। मजाक कर रही हूँ, बुरा मत मानिए। बहुत ही अच्‍छा व्‍यंग्‍य था, बह‍ुत आनन्‍द आया।

मनोज कुमार said...

खट्टी इमली है या करैला है
एक मेला है या झमेला है
प्यार क्या है वे बतायें कैसे
जिसने ये खेल नहीं खेला है।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इसे 06.03.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह ०६ बजे) में शामिल किया गया है।
http://chitthacharcha.blogspot.com/

Arvind Mishra said...

मुझे तो लगा की पुसदकर भाई इन दिनों किसी रोमान्टिक फ़िल्म की पटकथा लिख रहे हों ....मगर .....
वाह क्या फोटो है -बिलकुल असलियत है यह मगर कितनी घटिया सोच है वो रिक्शे पर बैठने वाली की न !

राज भाटिय़ा said...

अरे अरे क्यो अपनी आजादी कॊ दांव पर लगाने पर तुले है....आप के यह सब दोस्त नही दुशमन है खुद तो बीबियो की गुलामी कर रहे है.... ओर आप को आजाद देख कर जलते है, काश मेरे पास भी एक रिक्क्षा होता, ओर जिस पर बडे बडे अक्षरो मे लिखा होता सिर्फ़ हसीनाओ के लिये है यह रिक्क्षा ओर रिक्क्षे वाला, बस फ़िर तो मोजा ही मोजा, जनाब आप तो खुब जंच रहे है, अगर दो चार पोस्टे आप ने खुश हो कर दे दी तो देखे आप के दोस्त भी रिक्क्षा ले कर आप के पीछे पीछे ना आ जाये, सब गुलाम है बीबीयो के, ओर आप की आजादी से जलते है, खुश रहे ओर खुब रिक्क्षा चलाये, इसी बहाने हम भी आंखे सेंक लेगे जी.
धन्यवाद

संजय बेंगाणी said...

:)

Sanjeet Tripathi said...

hmm, baat to sahi kah rahe ho mahesh bhaiya, guru ne to le de ke apna jugad lagaane ka rasta dhundh liya aur aazma bhi rahe hain is bhari garmi me ;)

ab apan kya karein, chalo dekhte hain ki ye guru pahle safal hote hain ya apni chandal chaukdi ke bahkave me bas rikshaw hi chalate rahenge ;)

ताऊ रामपुरिया said...

भाटिया जी की बात पर ध्यान दिया जाना चाहिये.:)

वैसे सही कहूं हंसी आरही है.

रामराम.

शरद कोकास said...

अनिल भाई आपके रिक्शे के लिये यह एक पूरी कविता ------------------------
( रिक्शेवाला )


उसके पाँवों में इकठ्ठा ताकत
शाम को रोटी बन जायेगी
माथे से टपकता पसीना
नन्हे बच्चे के लिये दूध
आँखों के आगे गहराता
नसों से निकलता अन्धेरा
गवाह रहेगा
आनेवाली खुशहाल सुबह का

रिक्शे की गुदगुदी सीट पर
बैठने का सामर्थ्य रखने वाले लोग
राह चलते रोयेंगे
खाली जेबों का रोना
समय काटू बातों के बीच
पूछेंगे शहर के मौसम
और सिनेमा हॉल में लगी
नई फिल्म के बारे में
खस्ताहाल सड़कों को लेकर
शासन को गालियाँ देते हुए
उतरते वक़्त थमा देंगे
रेज़गारी के साथ
उसके लुटेरे होने का प्रमाणपत्र

वह जानता है
इन थुलथुल व्यक्तियों के पास
लिजलिजी दया के अलावा
और कुछ नहीं है ।
- शरद कोकास

डॉ टी एस दराल said...

कैसे कहें हम , इश्क ने क्या क्या , हमको खेल खिलाये
वो बैठी हमको , उल्लू समझे , हम रिक्शा खेंचे जाएँ।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

:-)))
बहुत बढिया हास्य व्यंग्य रचना!!
आपकी मित्रमंडली में तो दुर्योधन,शिशुपाल जैसे इतिहासिक खलनायक भी सम्मिलित हैं :-)

डॉ महेश सिन्हा said...

ये डाक्टर साहब या तो अच्छे दोस्त हैं या जबरदस्त दुश्मन :)
भाई जब राहुल महाजन के लिए लाइन लग सकती है तो अपने गबरू जवान में क्या कमी है? और आजकल
अनिल हैं भी सुनहले पर्दे में आज ही एक छत्तीसगड़ी फिल्म के लौंचिंग में पाये गए.
डाक्टर साहब शायद अपने परम मित्र को खोना नहीं चाहते भविष्य का आंकलन करके .
वैसे एक ब्लागरशादी डॉट कॉम खोला जा सकता है कई अविवाहित युवक युवतियां हैं यहाँ, क्या ख़याल है ...प्रश्न सबसे है

Udan Tashtari said...

फोटो देख कर अच्छा लगा...कहानी पढ़कर आँसू टपकते टपकते बचे...


हाय!! ये एक्सपायरी डेट क्यूँ आती है!! :)

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

फोटो तो कल देख ली थी , कुवारे लोग ऎसा नही करेन्गे तो क्या हम जैसे जवान होते बच्चो के बाप ऎसा करेन्गे

युवराज गजपाल said...

इस पोस्ट मे अगर ये गाना होता तो और मजा आ जाता ।

मे रिक्सा वाला ताव ग, रिक्सा के चलइया ।
चार सवारी एमा बइठ ही , आघु डाहर चढ़ जा ।
रेगत जाबे दुख ल पाबे , रिक्सा मे आ चढ़ जा ॥
मे अनिल पुसदकार हरो गा , रिक्सा के चलइया ।

युवराज गजपाल said...

इस पोस्ट मे अगर ये गाना होता तो और मजा आ जाता ।

मे रिक्सा वाला ताव ग, रिक्सा के चलइया ।
चार सवारी एमा बइठ ही , आघु डाहर चढ़ जा ।
रेगत जाबे दुख ल पाबे , रिक्सा मे आ चढ़ जा ॥
मे अनिल पुसदकार हरो गा , रिक्सा के चलइया ।

रानीविशाल said...

Badiya post :D
photo bhi bahut khub hai jiiiiiiiiii :)

shankar chandraker said...

वाह भैया, क्या खूब बात है. डबल होने का ख्याल बहुत ही खुशखबरी भरा है. भैयाजी जल्दी कीजिये, बारात कब जाना है. ताकि बड़े भैया के बाद छोटे का भी लाइन क्लियर हो.

दीपक 'मशाल' said...

khud par vyangya karna asan kaam nahin bhaia.. magar ye baat aap par laagoo nahin hoti.. :)

Unknown said...

अरे कौन कहता है कि आप घिसे हुए सिक्के हो? बिल्कुल गलत बात है यह। अनिल जी, आप तो खरा सोना हो जिसे जब चाहे तब भुनाया जा सकता है।

और हाँ अनिल जी, यदि आपके मित्र और हितैषी सभी मिलकर आपका काम ना साध पायें तो आप हमसे मिल लेना, बात की बात में आपका काम हो जायेगा।

Khushdeep Sehgal said...

मैं तेरे प्यार में क्या-क्या न बना,
दिलबर जाने ये मौसम...

ये पोस्ट सबूत है उन ब्ल़ॉगरों के लिए जो सिर्फ विवाद या पॉपुलर नामों के ज़रिए ही अपनी पोस्ट हिट कराना चाहते हैं...अपने पर चुटकियां लेना भी सीखिए...अनिल भाई अपने वीक पाइंट्स को भी लिखते वक्त कितना मज़ेदार बना देते हैं...यही है वो सच्चाई जो पसंद की जाती है...अनिल भाई के यही गुण कुछ कुछ महफूज़ में भी है...इसीलिए दोनों की ज़बरदस्त फैन फॉलोइंग है...

जय हिंद...

मुनीश ( munish ) said...

मर्द तो 'साठे 'में 'पाठे ' होते हैं अनिल भाई ! अभी कौन देर हो गयी आप पैडल मारो ,रिक्शा सही जगह जा राया है !

Ajay Saxena said...

बढ़िया पोस्ट .. नानसेंस टाईम्स मे छापी गयी इमेजिंग फोटो आपके पोस्ट में देख बहुत ख़ुशी हुई ...मेहनत सफल हो गयी ...धन्यवाद आपका

Pratik Maheshwari said...

अनिलजी, उम्र तो हमारी है, तो फिर आप उस रिक्शे पर क्या कर रहे हैं? :)

मज़ा आया..

Ajay Tripathi said...

अनिल भाई को होली का तिरंगा सलाम , मै आपका छोटा ............... हू ! कालेज के ज़माने से पीछे पीछे सिटी बस से शंकर नगर से युनिवार्सियी यु टी डी तक कटोरा तालाब पेंशन बड़ा होकर चले पी. जी . तक के सफ़र की कई सुहानी यादे है ! सब कुछ शहर के आपके दीवाने मस्ताने तो जानते है आपने नान - सेंसों की खबर और अज्जू की महनती फोटो को ब्लॉग में लिख कर पूरे ब्लॉग के दीवाने मस्तानो को भी बता दिया की समस्या कितनी गंभीर हो हो गयी है

Anonymous said...

अब तो बस किसी को बहला-फ़ुसला को फ़ंसा लो तो हो सकता है आपकी ये अंतिम इच्छा पूरी भी हो जाये।

क्या गजब करते हो जी!?

बी एस पाबला