यूपीये कहिये या कांग्रेस उसकी नीयत पर तो सवाल उठना वाजिब है?जिस तरीके से लालगढ मे नक्सलियों के सफ़ाये के लिये अभियान चलाया गया,वो प्रशंसनीय है मगर जिस तरीके से भाजपा शासित छत्तीसगढ की नक्सली उत्पात के बावज़ूद उपेक्षा की गई वो भी सामने है।आम चुनावो मे ममता के साथ मिली ज़बरदस्त सफ़लता और आने वाले विधानसभा चुनाव मे सरकार बनाने की अपार संभावनाओं ने लालगढ के नक्सली गढ को ढहाने मे पूरी ताक़त झोंक दी और नतीज़ा भी शानदार सफ़लता के रूप मे सामने आया।
केन्द्र सरकार जब लालगढ का नक्सली आतंक खतम कर सकती है तो छ्त्तीसगढ का भी कर सकती है अगर वो चाहे तो?शायद इसिलिये कहा जाता है नक्सलवाद एक राजनैतिक समस्या है?जिसका हल राजनैतिक इच्छा शक्ति के बिना संभव ही नही है।यंहा भी अगर किसी चीज़ की कमी नज़र आती है तो सिर्फ़ राजनैतिक इच्छा शक्ति की।इतने बडे हमले और हादसे के बाद भी यंहा सिर्फ़ 600 जवान भेजना कोई ठोस हल नही है।इसके लिये टुकडो मे नही पूरा ईलाज़ ज़रूरी है।ईलाका बडा और दुर्गम होने के कारण एक साथ नही सही मगर एक के बाद एक लगातार अलग अलग हिस्सों मे अभियान चला कर छतीसगढ को भी लालगढ जैसे ही मुक्त कराया जा सकता है।
सवाल फ़िर उसी बात का आता है कि छत्तीसगढ किस चश्मे से कैसा नज़र आता है?भाजपा के चश्मे से और कांग्रेस या चिदंबरम के चश्मे से जिस दिन एक जैसा नज़र आयेगा उस दिन ही छतीसगढ से नक्स्ल समस्या के अंत की शुरूआत हो जायेगी ?
18 comments:
चश्मा तो एक ही है, बाई आँख पर भाजपा-विरोधी सेकुलर काँच का, और दाईं आँख पर लाशों द्वारा चुनावी फ़ायदा बटोरने के काँच वाला…। ये पक्का कांग्रेसी चश्मा है, आसानी से टूटने वाला नहीं है… क्योंकि इस चश्मे की दोनों डंडियाँ मानवाधिकारवादियों ने पकड़ रखी हैं… :)
इसी राजनीति के चलते तो आज 13 राज्यों की ये हालत हो गई है।
क्या यह देश इन राजनीति वालो का इन कमीने नेताओ का है, यह तो कुत्ते से भी गये गुजरे है, गली के कुत्ते को भी रोटी ना डालो तो भी वो पुरी गली को अपना समझता है, ओर यह हरामी नेता, जहां जीतते है वहा भी ळुटते है, ओर जहा हारते है वहा दुसरो से लुटबाते है....
समस्याएं किसी भी चश्में से नहीं दिखेंगी नेताओं को....
सही कहा आपने.
रामराम.
एक नज़र से देखने वाले बचे ही कहाँ हैं, दोनों ही …:-)
क्या कहें? यही लाल गलियारा जब चीन आक्रमण करेगा उसे लाल सलाम ठोकेगा. अतः इसे जल्द से जल्द नष्ट कर देना चाहिए. मगर कैसे? हमने तो चश्में पहन रखे हैं....दुखद.
Bangaal.........Chatisgarh........Bihaar.........Jhaarkhand...... ye sab jagaayen bahoot hi happening jagah hain..... aaj kal sab ki nazar udher hi lagi huyee hai.... kabhi to Chidaamber saahab ki nazar bhi uthegi....
सही बात कहा आपने।
जब तक वोटों के लिये यह नहीं त्यागा जायेगा, हर जगह यही होत रहेगा.
राजनीति के कारण ही देश की यह हालत है..
वाकई ऐसा ही है ,,कांग्रेसी सीएम होता तो कुछ और नजारा होता ..यह भी लाल गढ़ जैसा नक्सली मुक्त राज्य होता ...यहाँ तो चाओर वाले बाबा और साहितियिक डीजीपी से कुछ होने वाला नहीं है ..
यही परिणाम होता है जब तुष्टिकरण की राजनीति अपनाई जाती है- पहले तो पुचकारा और अब??????? इसी लिए तो कहते है- निप इट इन द बड[NIP IT IN THE BUD]!
मैं तो इस घटना से दुखित हुआ हूं। राजनीति की क्या बात कहूं।
पूरे आलेख और अब तक की गयी सभी टिप्पणियों से सहमत .
इस राजनीति में मोहरा बने बेचारे पुलिस वालो के परिवारों को कौन संभालेगा ...?
लोग अनपढ़ नेताओं को रोते हैं, पढ़े-लिखों ने तो और भी दुखी किया है. कभी "ग्रो मोर" में भागीदारी रखकर, कभी काले धन को बढावा देने की गरज से चेक पर टैक्स लगाकर, कभी ...
इन राजनीतिज्ञों की आंख पर स्वार्थ का चश्मा चढ़ा हुआ है, जिससे अगर कुछ दिखता है तो सिर्फ पैसा।
नक्सली हमले में एसपी विनोद चौबे समेत तीस जवानों की मौत जैसी घटनाओं का असर हमारे यहां के पुलिसकर्मियों के मनोबल पर भी दिख रहा है। उनका साफ कहना है कि अब जांबाजी दिखाने का समय नहीं रहा।
शहीद एसपी स्व.विनोद चौबे का परिवार मूल रूप से हमारे बगल के भोजपुर जिले का ही रहनेवाला था। इस वारदात से हमारे इलाके के लोग भी अत्यधिक मर्माहत हैं।
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