Monday, January 24, 2011

नक्सलियों के मददगार डा विनायक सेन के मामले में युरोपिय यूनियन की दिलचस्पी?क्या दाल में काला होने का सबूत नही?

नक्सलियो की मदद करने और राष्ट्रदोह के मामले उम्र कैद की सज़ा पा चुके डा विनायक सेन ने हाई कोर्ट में उस फ़ैसले को चुनौती दी है।आज उस मामले की सुनवाई है और पैरवी के लिये राम जेठमलानी यंहा आ चुके हैं और साथ ही आया है युरोपिय यूनियन का एक प्रतिनिधी मण्डल भी।इस प्रतिनिधि मण्डल ने हाईकोर्ट मे मामले की सुनवाई के दौरान ओब्ज़र्वर के रूप मे उपस्थित रहने की अनुमति भी मांगी है।इस बारे में बताया जाता है कि भारत मे ओपन हाऊस होने की वजह से कोर्ट में सम्बंधित पक्ष का कोई भी व्यक्ति उपस्थित रह सकता है,वंही कुछ अधिवक्ताओं ने ओब्ज़र्वर जैसी व्यवस्था नही होने की बात कही है और इसे सीधे-सीधे मामले मे दबाव डालने का प्रयास बताया।राजधानी रायपुर में विमान से उतरते ही युरोपिय यूनियन के सदस्यों को नागरिक संघर्ष परिषद का विरोध झेलना पड़ा।

अब सवाल ये उठता है कि किसी भी देश की न्याय व्यवस्था में इस तरह ओब्ज़र्वर बन कर युरोपिय यूनियन के सदस्य कितनी बार गयें हैं?और किन-किन देशों मे गयें हैं?फ़िर ये भी सवाल महत्वपूर्ण है कि आखिर डा विनायक सेन के मामले मे उन्हे इतनी दिलचस्पी क्यों है?जबकि उनपर राजद्रोह का आरोप है तो क्या किसी देश के राजद्रोह के आरोपी के मामले मे दिलचस्पी लेना उस देश कि मुखालफ़त नही है?युरोपीय यूनियन डा सेन के अलावा नक्सलियों के हाथों मारे गये पुलिस जवानो के मामलों को जब इस देश की समस्या मान सकती है तो फ़िर डा विनायक सेन के मामलें मे इतनी दिलचस्पी क्यों?

समझ मे नही आता कि उन्हे यंहा तक़ आने ही क्यों दिया गया?क्या केन्द्र सरकार के लोग भी चाहते हैं कि वे छत्तीसगढ की न्याय प्रणाली को विदेशी देखें?सारे देश में छत्तीसगढ संभवतः पहला राज्य है जंहा भारी राजनैतिक,सामाजिक और अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद नक्सल मामलों मे शामिल डा सेन और अन्य लोगों के खिलाफ़ कड़ी कानूनी कार्रवाई करने की पहल की है।इस फ़ैसले का नक्सली जम कर विरोध कर रहे हैं जो इस बात की ओर इशारा करता है कि डा सेन से उन्हे हमदर्दी है।और अब युरोपिय यूनियन के सद्स्यो का इस मामले में दिलचस्पी लेना भी यही बताता है कि दाल में काला तो है ज़रूर्।

13 comments:

डॉ महेश सिन्हा said...

दाल में काला नहीं पूरी दाल ही काली है

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

@कुछ अधिवक्ताओं ने ओब्ज़र्वर जैसी व्यवस्था नही होने की बात कही है और इसे सीधे-सीधे मामले मे दबाव डालने का प्रयास बताया।

सही है।

कमल शर्मा said...

anilji
kuch had tak aapki baat se sahmat hun, ki commission ko aane hi nahin diya jaana chahiye tha, par naksali vinay sen ko sazaa hone ka jo virodh kar rahe hain, us se daal mein kuch kaala hone jaisi baat thik nahin. agar kal kisi ko bhi naksaliyon ka saathi bataana ho to bas naksaliyon ki taraf se samarthan yaa virodh karwaa dene se kaam ho jaayega bhale hi wo garib naksaliyon ko door door tak jaanta bhi naa ho.........

kamal sharma
http://aghorupanishad.blogspot.com

प्रवीण पाण्डेय said...

हमारी तो उनकी दिलचस्पी में दिलचस्पी है।

shubham news producer said...

Dal Mein Kala Nahi Bhaiya Puri Dal Kali Hai.
Lagta Hai Naxalawad Mein Bhi Widesiyo Ka Hath Hai

shubham news producer said...

Dal Mein Kala Nahi Bhaiya Puri Dal Kali Hai.
Lagta Hai Naxalawad Mein Bhi Widesiyo Ka Hath Hai

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

भई मैं तो एक कार्टून ही बना सका...

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

ऐसी टीम को २६/११ के लिए पाकिस्तान को क्यों नहीं भेजा गया ???????????

Unknown said...

पूरी दाल ही काली होने की कगार पर है भैया…

मूर्ख हिन्दुओं को तब समझ में आयेगा जब उनके पिछवाड़े गरम किये जाने लगेंगे… (या शायद तब भी नहीं)

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

सीधा हस्तक्षेप है यह..

Smart Indian said...

अब विदेशियों की कौन कहे, अपने सेठ ठेठ देसी ... जेठमलानी भी आगे आ गए हैं बिनायक सेन को निर्दोष साबित कराने.

निर्मला कपिला said...

सुरेश भाई हम भी काली दाल खाने के आदी जो हो गये हैं। बिना मिलावत क्या और कुछ होता है? फिर बेचारी दाल को ही क्यों कोसा जाये?
आपको गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।

ajeet said...

kala akshar bhais barabar